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________________ हैं : मूकमाटी-मीमांसा :: 325 "आज पथ दिखाने वालों को / पथ दिख नहीं रहा है, माँ ! कारण विदित ही है - / जिसे पथ दिखाया जा रहा है वह स्वयं पथ पर चलना चाहता नहीं, /औरों को चलाना चाहता है और/इन चालाक, चालकों की संख्या अनगिन है ।" (पृ. १५२) 'समाजवाद' के लिए आवश्यक है कि समाज में समता ही नहीं बल्कि समरसता भी हो, किन्तु देखने में आता है समाज में 'श्वान सभ्यता' ने अपना घर बना लिया है। आज व्यक्ति कुत्ते की तरह अपनी ही जाति पर गुर्राता है। सिंह वृत्ति समाप्त हो गई है जबकि राजा की वृत्ति पहले सिंह वृत्ति मानी जाती थी और आज भी उसकी आवश्यकता है । कोई भी विचारधारा जनभावनाओं पर अवलम्बित होती है। जन भावना को दो रूपों में देखा जाता है। एक सज्जनता के रूप में और दूसरी दुर्जनता के रूप में। यह सज्जनता और दुर्जनता क्या है, इस विषय में आचार्यश्री का है : 'एक-दूसरे के सुख - दु:ख में / परस्पर भाग लेना / सज्जनता की पहचान है, और/औरों के सुख को देख, जलना / औरों के दुःख को देख, खिलना दुर्जनता का सही लक्षण है । " (पृ. १६८) इसी भाव की अभिव्यक्ति 'कामायनी' में श्री जयशंकर प्रसादजी करते हैं : "औरों को हँसते देखो मनु / हँसो और सुख पाओ; अपने सुख को विस्तृत कर लो / सब को सुखी बनाओ ।" 'समाजवाद' शोषण के विरुद्ध विचारधारा का नाम है। जब किसी विचारधारा में दृष्टिभेद समाहित होता है तो वैचारिक संघर्ष भी जन्मते हैं। समाजवाद की सही प्रतिष्ठा न होने का कारण है - वर्गभेद, वर्णभेद तथा जाति भेद । एक तरफ किसी का अधिक पोषण किया जा रहा होता है तो दूसरी ओर अत्यन्त शोषण होता है, जिसकी परिणति आतंकवाद में होती है : "यह बात निश्चित है कि / मान को टीस पहुँचने से ही, आतंकवाद का अवतार होता है । / अति-पोषण या अति-शोषण का भी यही परिणाम होता है ।" (पृ. ४१८ ) 'आतंक' जब किसी 'वाद' से अभिव्यक्त होने लगे तो समझना चाहिए कि समाज में कुछ लोग इसके समर्थक भी हैं, भले ही हम इन्हें 'भ्रमित जन' की संज्ञा दें । 'वाद' वही श्रेष्ठ है जिसमें हिंसा, असत्य और चोरी आदि के लिए कोई अवकाश नहीं हो । यही कारण है कि नक्सलवादी भी अपने आपको अमीर-गरीब का भेद मिटाने वाला कहते हैं, किन्तु उनके हिंसक और चौर्य रूप के कारण समाज उन्हें मान्यता नहीं देता । समाजवाद को फलने-फूलने के अवसर लोकतन्त्र में अधिक होते हैं किन्तु आज लोकतन्त्र भी नाम के रह गए हैं । जिस तन्त्र को 'जन' का सेवक होना चाहिए था वह 'जन' से अपने पैर पुजवा रहा है। 'जनतन्त्र' के पर्याय रूप में आज ‘धनतन्त्र', ‘मनमाना तन्त्र' या 'भीड़ तन्त्र' जैसे नाम प्रचलित हो गए हैं। लोक पीछे छूट गया है और तन्त्र लोक
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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