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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 317 भारत में दर्शन स्वारथ का होता है ।" (पृ. ८२) समकालिक जीवन पर एक सटीक व्यंग्य यहाँ प्रस्तुत है : “ “वसुधैव कुटुम्बकम्"/इसका आधुनिकीकरण हुआ है / 'वसु'यानी धन-द्रव्य 'धा' यानी धारण करना/आज/धन ही कुटुम्ब बन गया है धन ही मुकुट बन गया है जीवन का।" (पृ. ८२) सत्युग एवं कलियुग की व्याख्या करते हुए कवि ने अपने चिन्तन की तथा अभिव्यक्ति की नपी-तुली कुशलता भी प्रदर्शित की है : “सत्-युग हो या कलियुग/बाहरी नहीं/भीतरी घटना है वह सत् की खोज में लगी दृष्टि ही/सत्-युग है, बेटा!/ और असत्-विषयों में डूबी/आ-पाद-कण्ठ सत् को असत् मानने वाली दृष्टि/स्वयं कलियुग है, बेटा!" (पृ. ८३) इसी दृष्टि को अधिक स्पष्ट करते हुए कवि का प्रतिपादन है : "एक की दृष्टि/व्यष्टि की ओर/भाग रही है,/एक की दृष्टि/समष्टि की ओर जाग रही है,/एक की सृष्टि/चला-चपला है/एक की सृष्टि/कला-अचला है। एक का जीवन/मृतक-सा लगता है/कान्तिमुक्त शव है,/एक का जीवन अमृत-सा लगता है/कान्ति युक्त शिव है ।/शव में आग लगाना होगा, और/शिव में राग जगाना होगा।" (पृ. ८४) 'मूकमाटी' के आरम्भ में प्रकृति का मनोरम वर्णन कवि ने प्रस्तुत किया है, जो प्रतिपाद्य के पार्श्वभूमि के यथायोग्य ही है । द्रष्टव्य है : "निशा का अवसान हो रहा है/उषा की अब शान हो रही है भानु की निद्रा टूट तो गई है/परन्तु अभी वह/लेटा है माँ की मार्दव-गोद में,/मुख पर अंचल ले कर/करवटें ले रहा है। प्राची के अधरों पर/मन्द मधुरिम मुस्कान है सर पर पल्ला नहीं है/और/सिंदूरी धूल उड़ती-सी रंगीन राग की आभा-/भाई है, भाई..!" (पृ. १) निशा का अवसान, उषा की शान, सूरज की नींद का टूटना, उसका करवटें लेना, प्राची के अधरों की मुस्कान, मुग्धा नायिका का मनोरम रूप-प्रभातकालीन प्रकृति का मूर्तीकरण अतीव सुन्दर बन पड़ा है। काव्य में कवि ने संवाद शैली, वार्तालाप शैली का ही मुख्यत: प्रयोग किया जिससे मुक्त छन्द में होते हुए भी एक प्रवाहात्मकता विद्यमान है । श्लेष, उपमा, रूपक तथा प्रतीकों के सफल प्रयोग को काव्य में सर्वत्र देखा जा सकता है। शब्दों का विलोम प्रयोग और उससे निर्मित भिन्न, विपरीत अर्थ छटाएँ कवि की रचना शैली की विशिष्टता है। एक उदाहरण द्रष्टव्य है :
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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