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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 293 'मूकमाटी' में रसायन शास्त्र से सम्बन्धित अनेक निरीक्षणों के माध्यम से अध्यात्म तत्त्व समझाए गए हैं। ये निरीक्षण निम्न हैं : (१) जल को गरम करने से वाष्प बनती है, ऊपर जाकर वह मेघों का रूप धारण करती है, जो काले, नीले और कबूतरी रंग के होते हैं। जल से भूतल पर दलदल बनता है । जल में विलेयता का गुण होता है । वह जिसे भी विलयित करता है, उसकी प्रकृति तदनुरूप (कटु, मिष्ट, खारी, विषैली) हो जाती है । जल सदैव ही शीतलता देता है। बर्फ जल पर तैरता है और उसमें जल की तुलना में अनेक विशेषताएँ होती हैं । यह उष्ण प्रकृति का होता है । (३) जल से मुक्ता बनती है। समुद्र के गर्भ में अनेक प्रकार के रत्न होते हैं। इनकी रक्षा समुद्र की सेना (अनेक प्रकार के जल-जन्तु) करती है । समुद्र की पत्नी 'बदली' है। दही से नवनीत निकाला जाता है पर वह पुनः दही में परिणत नहीं हो सकता है। (५) पदार्थ दो प्रकार के होते हैं-शुद्ध और अशुद्ध (मिश्रण)। मिश्रण की प्रकृति मिले हुए अवयवों पर निर्भर करती है। दूध-भात इसका उदाहरण है । मिश्रण के अवयव अलग किए जा सकते हैं। सरिता तट की मिट्टी, मिट्टी और कंकड़ों का मिश्रण है। गाय के दूध में आक का दूध मिलाने से वह फट जाता है । मढे को छौंकने से स्वादिष्टता आती है । दूध को छौंकने से विकृति आती है । मठा-महेरी से संग्रहणी रोग दूर होता है। अग्नि अनेक द्रव्यों से अशुद्धियाँ दूर करती है। धातु के अयस्कों से शुद्ध धातु देती है (और उन्हें शुद्ध करती है)। अग्नि अनेक रासायनिक क्रियाएँ करती है जिससे उत्पन्न वस्तु में अच्छे गुण आते हैं, उसकी उपयोगिता बढ़ जाती है । मूकमाटी से घट निर्माण की प्रक्रिया में अग्निपाक यही काम करता है । अग्निपाक के समय उत्पन्न धुआँ चारों दिशाओं में फैलता है। यह अग्नि में रखे पदार्थों में प्रविष्ट होकर उन्हें सीमित सछिद्रता प्रदान करता है। कवि की अग्नि पुरातन युगीन लकड़ी या कोयले से प्राप्त अग्नि है। (८) लकड़ी को जलाने पर, हवा की मात्रा के अनुसार कोयला भी बनता है और राख भी मिलती है। (९) काँटे के समान वस्तुओं ने भी बड़ी प्रगति की है। वे वृक्षों के अतिरिक्त, धातुओं के भी बनने लगे हैं और अनेक यन्त्रों में दिशासूचक सुई के रूप में काम आते हैं। (१०) कवि ने अणु शक्ति और 'स्टार वार' का उल्लेख भी किया है। (११) काव्य में चक्षु की अप्राप्यकारिता के भी संकेत हैं। कृषि विज्ञान के अन्तर्गत दो सामान्य निरीक्षण दिए गए हैं : (१२) केवल खाद में बीज डालने पर वह जल जाता है, अंकुरित नहीं होता। (१३) खाद युक्त मिट्टी में बीज डालने पर समुचित जल और वायु मिलने पर वह अंकुरित होकर क्रमश: वटवृक्ष का रूप धारण कर लेता है। चिकित्सा के क्षेत्र से सम्बन्धित कुछ उल्लेख (६) भी बताए गए हैं। यह भी बताया गया है कि आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा दाह रोग के लिए उत्तम है । लवणभास्कर चूर्ण और संजीवनी वटी भी रोग निवारक हैं। मठा और कर्नाटक की ज्वार का दलिया दाह रोग के लिए अच्छे पथ्य हैं । उष्ण प्रकृति से पित्त कुपित होता है और दाह उत्पन्न होता है। प्राणायाम और योग भी निरोगता देता है । मोह और असाता कर्म के उदय से भूख लगती है, अचेतन शरीर या इन्द्रियों को भूख नहीं लगती । मिट्टी, पानी और हवा अनेक रोगों की दवा है। अहिंसक आचार और पथ्य जीवन के महान् हितकारी हैं। अन्न पाचन एक दीर्घकालिक क्रिया है।
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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