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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 289 ३. यह लौकिक उपादानों तथा पूर्व साहित्य के ज्ञान, अध्ययन तथा नवीन कल्पनाओं की अपूर्वता पर आधारित है। ४. इसके वर्णन की शैली में अभूतपूर्वता है। ५. इसकी सृजनात्मकता उच्च कोटि की है। ६. इसमें व्यंजकता के सभी मनोहारी तत्त्व हैं । लालित्य और आकर्षण के मानसिक गुण स्थान-स्थान पर आ गए हैं। ७. इसके शब्द चयन (देशी, विदेशी, बुन्देलखण्डी), छन्द (मुक्तक, सम-मात्रिक, अर्ध-सममात्रिक), अलंकार (दस प्रकार), शैली (दस प्रकार), मुहावरे (१२०), कहावतें (२०), लोकोक्तियाँ (१०), सूक्तियाँ (४५), प्रतीक (स्वस्तिक आदि), रस (शान्तप्रधान, अन्य रस भी) आदि के वर्णनों से भाषा एवं लक्ष्यवेधन की मनोहारिता बढ़ी है। भावात्मकता के आधार पर भी यह काव्य मनोवैज्ञानिक सिद्ध होता है । मनोविज्ञान में भावात्मकता का संवेदन, मनोभाव एवं संवेग की त्रितय मानसिक प्रक्रियाओं के रूप में प्रकाशित किया जाता है । इनमें संवेदनाएँ बाह्य कारकों से उत्पन्न होती हैं और ज्ञानेन्द्रियों को प्रभावित करती हैं। ये दृष्टि, श्रवण, त्वक् एवं रासायनिक रूप में उत्पन्न होती हैं। ये ज्ञानात्मक प्रक्रियाओं का सरलतम साधन हैं। ये संवेदनाएँ सरल मनोभावों को जनती हैं जिनकी आकस्मिकता या तीव्रता संवेग में परिणत हो जाती है । 'मूकमाटी' में कुम्भ के निर्माण एवं शुभ उपयोग के समय सागर, नदी, कलश आदि की ईर्ष्या का चित्रण कवि की मनोवैज्ञानिक दृष्टि को स्पष्ट करता है । गुरु या साधुओं के प्रति भक्ति एवं श्रद्धापूर्ण आहारचर्या भक्तिरस की प्रतीक है । ऐसे कितने ही प्रकरण गिनाए जा सकते हैं जिनमें भावात्मक मनोवैज्ञानिकता इस महाकाव्य में अवतरित हुई है। 'मूकमाटी' महाकाव्य में मानसिकत: अनेक सरल एवं ऐच्छिक क्रियाओं का वर्णन है जिनमें चित्रण की मनोवैज्ञानिकता के दर्शन होते हैं। कंकड़ और माटी के वियोजन का विसंवाद, माटी और झारी का संवाद, सागर और कुम्भ की ईर्ष्या, आहार चर्या के समय के मनोभाव, जलचर जीवों की सेठ परिवार से सहानुभूति और नदी तथा आतंकी दल का उपसर्ग आदि के अवसर इस दृष्टि से रोचक लगते हैं। इस महाकाव्य का पतित के पावन रूप लेने का स्व-कल्याणी एवं जन-कल्याणी मंगलमय उद्देश्य भी मनोवैज्ञानिक दृष्टि से प्रभावी है । इसकी अभिव्यक्ति अनेक स्थलों पर की गई है । संसार में कौन व्यक्ति शाश्वत सुखमयता नहीं चाहता? पूरे महाकाव्य में समुचित अवसरों पर घृणा और अनुराग, असारता और उपयोगिता, ईर्ष्या और स्नेह, श्रद्धा और विश्वास के दृश्य दिखाए गए हैं। इनके आधार पर भोग से योग की ओर ले जाने का ऐच्छिक मार्ग प्रशस्त किया गया उपर्युक्त तत्त्वों के अतिरिक्त, महाकाव्य में अनेक प्रकार की नवीनताओं के दर्शन होते हैं जो इसे मनोवैज्ञानिक रूप से अत्यन्त प्रभावी बनाती हैं। इसमें नवीनता के निम्न तत्त्व प्रमुख हैं : (१) 'मूकमाटी' का रूपाकात्मक एवं अध्यात्मपरक कथानक (२) निर्जीव चरित्रों का मानवीकरण एवं रोचक तत्त्वदर्शी विवाद-संवाद (३) अनेक सामान्य शब्दों का व्युत्पत्तिपरक एवं सार्थक पर मनोवैज्ञानिकत: अत्यन्त प्रभावी अर्थ एवं कहीं कहीं शब्द-विलोम द्वारा नए अर्थों का उद्घाटन। क्र. शब्द सामान्य अर्थ विशिष्ट अर्थ १. कुम्भकार कुम्हार, शिल्पी भाग्यविधाता, जीवनदाता
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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