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________________ 280 :: मूकमाटी-मीमांसा "लो, अब शिल्पी/कुंकुम-सम मृदु माटी में/मात्रानुकूल मिलाता है छना निर्मल जल ।/ नूतन प्राण फूंक रहा है/माटी के जीवन में करुणामय कण-कण में।” (पृ.८९) तभी एक घटना घटित होती है और माटी को खोदने की प्रक्रिया में कुम्भकार की कुदाली एक काँटे के माथे पर जा लगती है और उसका सिर फट जाता है, जिसका प्रतिशोध लेना चाहते हुए भी वह असमर्थ रहता है । तब कुम्भकार अपनी असावधानी पर ग्लानि से भर जाता है और क्षमा माँगता है। सन्त कवि साहित्यबोध को अनेक आयामों में अंकित करते हैं और नव रसों को युगानुकूल परिभाषित कर संगीत की अन्तरंग प्रकृति का प्रतिपादन करते हैं। जीवन में इन नव रसों की क्या उपादेयता है और इन रसों के अभाव में मानव जीवन क्यों नीरस या मृतप्राय हो जाता है, आदि प्रश्नों का वे समाधान भी करते हैं। मानव जीवन में नव रस की सरिता अपने उद्दाम वेग से उफनती, झलकती, बीभत्स और भयानक रूप धारण करती है। वह कभी हँसती है, तो कभी रुलाती है, कभी शान्त और कभी करुणा की मूर्ति बन जाती है, क्योंकि करुण रस जीवन का प्राण तत्त्व है। “घूमते चक्र पर/लोंदा रखता है माटी का लोंदा भी घूमने लगता है-/चक्रवत् तेज-गति से ।" (पृ. १६०) 'संसार' शब्द का अर्थ-बोध कराते हुए कवि कहता है : “ 'सृ' धातु गति के अर्थ में आती है,/'सं' यानी समीचीन सार यानी सरकना"/जो सम्यक् सरकता है/वह संसार कहलाता है। ...इसी का परिणाम है कि/चार गतियों, चौरासी लाख योनियों में चक्कर खाती आ रही हूँ।” (पृ. १६१) फिर शिल्पी कुम्भकार चक्र पर से कुम्भ को उतारता है और उसके गीलेपन के सूखने पर सोट से चोट कर, कुम्भ के खोट निकालता है : "हाथ की ओट की ओर देखने से/दया का दर्शन होता है, मात्र चोट की ओर देखने से/निर्दयता उफनती-सी लगती है परन्तु,/चोट खोट पर है ना!/सावधानी बरत रही है। शिल्पी की आँखें पलकती नहीं हैं/तभी तो""/इसने कुम्भ को सुन्दर रूप दे घोटम-घोट किया है ।" (पृ. १६५) तब शिल्पी कुम्भकार अपने कुम्भ पर विचित्र प्रकार के चित्रों को उकेरता है, जो बिन बोले ही जीवन सन्देश देने के प्रतीक होते हैं। सिंह का चित्र जहाँ वीरता और मायाचार से दूर रहने का प्रतीक है, वहीं श्वान का चित्र श्वानसंस्कृति का प्रतीक होता है : "श्वान-सभ्यता-संस्कृति की/इसीलिए निन्दा होती है/कि वह अपनी जाति को देख कर/धरती खोदता, गुर्राता है। सिंह अपनी जाति में मिलकर जीता है,/राजा की वृत्ति ऐसी ही होती है,
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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