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268 :: मूकमाटी-मीमांसा
"ऊपर अणु की शक्ति काम कर रही है/तो इधर "नीचे मनु की शक्ति विद्यमान !/...एक मारक, एक तारक; एक विज्ञान है/जिसकी आजीविका तर्कणा है, एक आस्था है/जिसे आजीविका की चिन्ता नहीं।" (पृ. २४९) “निरन्तर साधना की यात्रा/भेद से अभेद की ओर, वेद से अवेद की ओर/बढ़ती है, बढ़नी ही चाहिए।" (पृ. २६७) "पुरुष और प्रकृति/इन दोनों के खेल का नाम ही/संसार है, यह कहना मूढ़ता है मोह की महिमा मात्र!/खेल खेलने वाला तो पुरुष है और/प्रकृति खिलौना मात्र !" (पृ. ३९४) “संहार की बात मत करो,/संघर्ष करते जाओ! हार की बात मत करो,/उत्कर्ष करते जाओ।" (पृ. ४३२)
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पृ. ४३४ -अपदों के मुख सेपदों की, पदवानोंकी
परिणति- पद्धति सुनकर“परिवर स्तमित हुआ।
2004