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________________ 'मूकमाटी' : एक स्मरणीय महाकाव्य " इस पर भी यदि / तुम्हें / श्रमण - साधना के विषय में और / अक्षय सुख-सम्बन्ध में / विश्वास नहीं हो रहा हो डॉ. राम प्रसाद मिश्र ... मैं जहाँ पर हूँ / वहाँ आकर देखो मुझे, / शब्दों पर विश्वास लाओ, हाँ, हाँ !! / विश्वास को अनूभूति मिलेगी /... और माहौल को अनिमेष निहारती - सी / मूकमाटी ।" (पृ. ४८७-४८८) 44 ... जैन आचार्य विद्यासागर कृत ४८८ डिमाई पृष्ठों के स्फीत अतुकान्त एवं 'नई' शैली के महाकाव्य 'मूकमाटी'. का उद्देश्य जैनधर्म एवं जैनदर्शन की सर्वश्रेष्ठता की स्थापना है जैसा कि अन्त से उद्धृत उक्त पंक्तियों से भी स्पष्ट है तथा 'मानस - तरंग' शीर्षक भूमिका के इन शब्दों से भी : . म्रष्टा कोई असाधारण बलशाली पुरुष है, और वह ईश्वर को छोड़कर और कौन हो सकता है? इस मान्यता का समर्थन प्रायः सब दर्शनकार करते हैं। ये कार्य-कारण व्यवस्था से अपरिचित हैं । ... ईश्वर मुक्तावस्था को छोड़कर पुन: शरीर को धारण कर जागतिक कार्य कर लेता है, ऐसा कहना भी उचित नहीं । ...शरीर है तो संसार है, संसार में दु:ख के सिवा और क्या है ? ... विद्या - विक्रियायें भी पूर्व-कृत पुण्योदय के अनुरूप ही फलती हैं, अन्यथा नहीं । ... कुछ दर्शन, जैन- दर्शन को नास्तिक मानते हैं और प्रचार करते हैं कि जो ईश्वर को नहीं मानते हैं, वे नास्तिक होते हैं। यह मान्यता उनकी दर्शन-विषयक अल्पज्ञता को ही सूचित करती है । ज्ञात रहे, कि श्रमण-संस्कृति के संपोषक जैन दर्शन ने बड़ी आस्था के साथ ईश्वर को परम श्रद्धेय-पूज्य के रूप में स्वीकारा है, सृष्टि-कर्ता के रूप में नहीं। ... ईश्वर को सृष्टि-कर्ता के रूप में स्वीकारना ही, उसे नकारना है, और सही नास्तिकता है, मिथ्या है । यह भाव तेजोबिन्दु उपनिषद् की निम्न कारिका से भली-भाँति स्पष्ट होता है : “रक्षको विष्णुरित्यादि ब्रह्मा सृष्टेस्तु कारणम् ।" “संहारे रुद्र इत्येवं सर्वं मिथ्येति निश्चिनु । ” (५/५१-५२) ब्रह्मा को सृष्टि का कर्ता, विष्णु को सृष्टि का संरक्षक और महेश को सृष्टि का विनाशक मानना मिथ्या है, इस मान्यता को छोड़ना ही आस्तिकता है । ... वर्ण-जाति-कुल आदि व्यवस्था-विधान को नकारा नहीं है । ... वीतराग श्रमण संस्कृति को जीवित रखना है...।" स्पष्ट है कि आचार्य विद्यासागर ने ऋग्वेद, यजुर्वेद (पुरुष सूक्त) के प्रथम अवसर पर ईश्वर को सृष्टि का कर्ता मानने के दर्शन को, जो बाइबिल एवं क़ुरान में भी प्राप्त होता है, नकारा है । किन्तु सृष्टि का कोई सजीव कारण नहीं दे सके । पुनर्जन्म, कर्मवाद, सिद्धशिला इत्यादि के बिन्दु जैन - दर्शनगत हैं और इनकी प्रत्यालोचना भी सरलता से की जा सकती है। कहीं-कहीं आचार्य ने हिन्दूधर्म की मान्यताओं पर प्रहार करते समय शालीनता का ध्यान नहीं रखा। 'मूकमाटी' के चार खण्ड हैं : १. संकर नहीं : वर्ण - लाभ २. शब्द सो बोध नहीं: बोध सो शोध नहीं ३. पुण्य का पालन : पाप - प्रक्षालन ४. अग्नि की परीक्षा : चाँदी-सी राख माटी प्रतीक है आत्मा या जीव की । वह खोदकर लाई जाते समय कूड़ा-कंकड़ आदि से युक्त होती है। कुम्भकार उसे स्वच्छ, संकर-मुक्त एवं सुन्दर रूप प्रदान करता है। शब्द स्वयं में एक ध्वनि मात्र है, बोध उसका अर्थवान्
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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