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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 251 क्या धन-संवर्धन हेतु/शर्म ही बेची जा रही है ?" (पृ. २०१) "कहाँ तक कहें अब !/धर्म का झण्डा भी/डण्डा बन जाता है शास्त्र शस्त्र बन जाता है/अवसर पाकर ।/और/प्रभु-स्तुति में तत्पर सुरीली बाँसुरी भी/बाँस बन पीट सकती है प्रभु-पथ पर चलनेवालों को/समय की बलिहारी है।" (पृ. ७३) ""वसुधैव कुटुम्बकम्'/इसका आधुनिकीकरण हुआ है 'वसु' यानी -धन-द्रव्य/'धा' यानी धारण करना/आज धन ही कुटुम्ब बन गया है/धन ही मुकुट बन गया है जीवन का।" (पृ. ८२) “अब-धन संग्रह नहीं,/जन-संग्रह करो!" (पृ. ४६७) 0 "प्राय: यही सीखा है विश्व ने/वैश्यवृत्ति के परिवेश में वेश्यावृत्ति की वैयावृत्य ..!" (पृ. २१७) ० “पदवाले ही पदोपलब्धि हेतु/पर को पद-दलित करते हैं, पाप-पाखण्ड करते हैं।" (पृ. ४३४) - "सूखा प्रलोभन मत दिया करो/स्वाश्रित जीवन जिया करो, कपटता की पटता को/जलांजलि दो!" (पृ. ३८७) 0 “अर्थ की आँखें/परमार्थ को देख नहीं सकती, अर्थ की लिप्सा ने बड़ों-बड़ों को/निर्लज्ज बनाया है ।" (पृ. १९२) आज सम्पूर्ण जगत् को शान्ति की आवश्यकता है । अहं की प्रवृत्ति ने मानव को पतित कर दिया है । सर्वत्र आतंकवादी प्रवृत्तियाँ मुखर हो रही हैं । बहिर्जगत् तो पूर्णत: आतंकित है ही, अन्तर्जगत् भी विषय-कषाय, भोगविलास के विकारों से आतंकित है। जब तक हमारे अन्तर्जगत् में सद्विचार, सद्वृत्तियों का स्फुरण नहीं होता और वे आचरण में नहीं आतीं, तब तक सुख-शान्ति की खोज अधूरी ही रहेगी और हम विज्ञान की अन्धेरी दौड़ में दौड़ते रहेंगेसशंक । अणु-परमाणु की शक्ति का सदुपयोग मानव कल्याण की दिशा में और अपनी आत्म-शान्ति का सदुपयोग आत्म-कल्याण की दिशा में करना होगा, अन्यथा आतंकवाद का प्रबल प्रभाव ही नज़र आएगा, किन्तु संकल्प शक्ति के समक्ष असत् को घुटने टेकने ही पड़ते हैं और सदैव होता है 'सत्यमेव जयते' : ० "जब तक जीवित है आतंकवाद/शान्ति का श्वास ले नहीं सकती धरती यह,/ये आँखें अब/आतंकवाद को देख नहीं सकतीं, ये कान अब/आतंक का नाम सुन नहीं सकते, . यह जीवन भी कृत-संकल्पित है कि/उसका रहे या इसका यहाँ अस्तित्व एक का रहेगा।" ('मूकमाटी', पृ. ४४१) "न्यायोचित सुख सुलभ नहीं/जब तक मानव-मानव को, चैन कहाँ धरती पर, तब तक/शान्ति कहाँ इस भव को ? जब तक मनुज-मनुज का यह/सुख-भाग नहीं सम होगा, शमित न होगा कोलाहल,/संघर्ष नहीं कम होगा।” (कुरुक्षेत्र : दिनकर) विस्तृत विवेचन के पश्चात् निष्कर्षत: हम कह सकते हैं कि 'मूकमाटी' के माध्यम से विश्व जीवन को प्रेरित
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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