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________________ 250 :: मूकमाटी-मीमांसा युग-चेतना को जागृत करने वाली 'मूकमाटी' की ये मार्मिक पंक्तियाँ द्रष्टव्य हैं : । “अन्याय मार्ग का अनुसरण करने वाले/रावण जैसे शत्रुओं पर रणांगण में कूदकर/राम जैसे/श्रम-शीलों का हाथ उठना ही कलियुग में सत्-युग ला सकता है,/धरती पर''यहीं पर।" (पृ. ३६२) ० "सत्पुरुषों से मिलने वाला/वचन-व्यापार का प्रयोजन परहित-सम्पादन है/और/पापी-पातकों से मिलने वाला वचन-व्यापार का प्रयोजन/परहित-पलायन, पीड़ा है।” (पृ. ४०२) वर्तमान राजनीति में व्याप्त स्वार्थपरता, पद-लोलुपता और भाई-भतीजावाद ने बहुत दलवाद को जन्म दिया है । लोकतन्त्र में राजनैतिक दलों का होना अनिवार्य है, किन्तु दलों का दल-दल नहीं । स्वतन्त्रता, स्वायत्तता, राष्ट्रीय एकता, धर्म निरपेक्षता, शान्ति, न्याय, नागरिक कल्याण आदि को सुरक्षित करने के लिए तथा देश की निरंकुश सत्ता की मनमानी पर अंकुश लगाने के लिए राजनैतिक दलों की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है, किन्तु दलगत कुत्सित राजनीति से संचालित दल राष्ट्र को अहितकर ही सिद्ध होते हैं । दल-बहुलता के दुष्परिणाम सन्त-कवि के शब्दों में : "दल-बहुलता शान्ति की हननी है ना!/जितने विचार, उतने प्रचार उतनी चाल-ढाल/हाला-घुली जल-ता/क्लान्ति की जननी है ना ! तभी तो/अतिवृष्टि का, अनावृष्टि का/और अकाल-वर्षा का समर्थन हो रहा यहाँ पर !" (पृ. १९७) स्वार्थी, दम्भी और लोभी मनुष्यों के मन में जब तक 'सब के उदय' की बात नहीं पनपती, तब तक समाजवाद का सपना साकार नहीं हो सकता । अहंवाद के पोषक समाजवाद का नारा लगाते हैं, जो हास्यास्पद लगता है। 'मूकमाटी' में सन्त-कवि ने बतलाया है कि सही समाजवाद तो यह है : "समाज का अर्थ होता है समूह/और/समूह यानी सम-समीचीन ऊह-विचार है/जो सदाचार की नींव है। कुल मिला कर अर्थ यह हुआ कि/प्रचार-प्रसार से दूर प्रशस्त आचार-विचार वालों का/जीवन ही समाजवाद है। समाजवाद समाजवाद चिल्लाने मात्र से/समाजवादी नहीं बनोगे।" (पृ. ४६१) 'मूकमाटी' महाकाव्य में सामयिक प्रसंगों को पर्याप्त रूप से समेटा गया है । यत्र-तत्र बिखरे उदाहरण मर्म पर चोट करने में तीखे, सशक्त एवं प्रभावी हैं । कतिपय सामयिक एवं मार्मिक व्यंग्य कृत्रिम धर्मान्धता, आधुनिकता, जनसंख्या, महँगाई, बेरोजगारी और अर्थान्धता पर करारी चोट करते हैं, यथा : 0 "अरे, धनिकों का धर्म दमदार होता है,/उनकी कृपा कृपणता पर होती है, उनके मिलन से कुछ मिलता नहीं,/काकतालीय-न्याय से/कुछ मिल भी जाय वह मिलन लवण-मिश्रित होता है/पल में प्यास दुगुनी हो उठती है।" (पृ.३८५) 0 “क्या सदय-हृदय भी आज/प्रलय का प्यासा बन गया ? क्या तन-संरक्षण हेतु/धर्म ही बेचा जा रहा है ?
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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