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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 243 0 “संघर्षमय जीवन का/उपसंहार/नियमरूप से हर्षमय होता है।" (पृ. १४) ‘अतिथिदेवो भव' -अतिथि सत्कार भारतीय संस्कृति का एक आदर्श है। अतिथि के बिना तिथियों का भी महत्त्व नहीं है । 'मूकमाटी' कार ने कहा है कि अतिथि ही तिथियों को पूज्य बनाते हैं, यथा : "अतिथि के बिना कभी/तिथियों में पूज्यता आ नहीं सकती अतिथि तिथियों का सम्पादक है ना!" (पृ. ३३५) 'साकेत' में गुप्तजी ने स्वयं भगवान् राम द्वारा अतिथि सत्कार का एक चित्रांकन इन शब्दों में अंकित किया “अपना आमंत्रित अतिथि मान कर सबको, पहले परोस पाई तृप्ति दान कर सबको प्रभु ने स्वजनों के साथ किया भोजन यों, सेवन करता है, मंद पवन उपवन में।" (साकेत : गुप्त) 'मूकमाटी' सम-सामयिक आधुनिकता, राष्ट्रीय चेतना, युगबोध, नैतिक मूल्य, लोकतन्त्र, समाजवाद, समता, लोक कल्याण, विश्व बन्धुत्व, आधुनिक भौतिकवादी भोगलिप्सा का त्याग, कर्मशील जीवन की प्रेरणा एवं नारी के सम्यक् मूल्यांकन जैसी विशेषताओं से समाविष्ट है । कतिपय उदाहरण द्रष्टव्य हैं । 'धृति-धारिणी धरती को 'मूकमाटी' कार ने इस प्रकार अभिव्यंजित किया है : "धरती शब्द का भी भाव/विलोम रूप से यही निकलता हैघर"ती तीर"ध/यानी,/जो तीर को धारण करती है या शरणागत को/तीर पर धरती है/वही धरती कहलाती है।" (पृ. ४५२) इस धरती पर सबको समान अधिकार है । यदि प्रत्येक का हित होता है तो यहीं पर लोकतत्त्व को महत्त्व मिलता है। लोक कल्याण की यह पवित्र भावना महाकाव्यों में इस प्रकार अभिव्यक्त हुई है : ० "केवल उन्हीं के लिये नहीं यह धरणी,/है औरों की भी भार धारिणी भरणी। जब पद के बन्धन मुक्ति हेतु हैं सबके/यदि नियम न हो उच्छिन्न सभी हों कबके।" (साकेत: गुप्त) "धर्मराज, यह भूमि किसी की/नहीं क्रीत है दासी, हैं जन्मना समान परस्पर/इसके सभी निवासी। है सब को अधिकार मृत्ति का/पोषक-रस पीने का, विविध अभावों से अशंक होकर जग में जीने का। सब को मुक्त प्रकाश चाहिये, हो -/सबको मुक्त समीरण, बाधा-रहित विकास, मुक्त/आशंकाओं से जीवन ।” (कुरुक्षेत्र : दिनकर) "लोक में लोकतन्त्र का नीड़/तब तक सुरक्षित रहेगा। जब तक 'भी' श्वास लेता रहेगा।/'भी' से स्वच्छन्दता-मदान्धता मिटती है स्वतन्त्रता के स्वप्न साकार होते हैं,/सद्विचार सदाचार के बीज D .
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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