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मूकमाटी-मीमांसा :: 217
उछाल दिया शून्य में/बहुत दूर"धरती के कक्ष के बाहर, 'आर्य भट्ट, रोहिणी' आदिक/उपग्रहों को उछाल देता है
यथा प्रक्षेपास्त्र ।" (पृ. २५०) ओलों और भूकणों के परस्पर काल्पनिक टकराव से उत्पन्न दृश्य कवि की दृष्टि में स्टार-वार के दृश्य से कम महत्त्वपूर्ण एवं प्रभावपूर्ण नहीं। इसीलिए तो वह उसका समापन इन शब्दों में करता है :
“यह घटना-क्रम/घण्टों तक चलता रहा "लगातार, इसके सामने 'स्टार-वार'/जो इन दिनों चर्चा का विषय बना है
विशेष महत्त्व नहीं रखता।" (पृ. २५१) निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि युगीन परिस्थितियों के विशद चित्रण में कवि श्री विद्यासागरजी को पूर्ण सफलता मिली है । यद्यपि वर्णन कहीं-कहीं बहुत लम्बे हो गए हैं, फिर भी कहीं नीरसता नहीं। निर्जीव पात्रों के मुखों से जो भी बातें कहलवाईं गईं हैं, वे चित्ताकर्षक हैं। प्रकृति के रमणीय दृश्य पाठकों को रमाने की पूरी क्षमता रखते हैं, क्योंकि कविश्री का वर्णन करने का ढंग अपने आप में अद्वितीय है।
पृष्ठ२३६.२३० लो, विचारों में समानता-... ---आकुलता कर मुनी बदी है।
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