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________________ 210 :: मूकमाटी-मीमांसा कवियों के लिए कहा गया है : "कविर्मनीषी परिभूः स्वयम्भूः । " ( ईशावास्योपनिषत् / ८) बीसवीं और इक्कीसवीं शती के मिलन बिन्दु पर खड़े सन्त कवि विद्यासागरजी आत्म-परमात्मतत्त्व तक ही सीमित नहीं हैं, वे वर्तमान सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, वैज्ञानिक और प्राकृतिक परिस्थितियों से पूर्णरूपेण परिचित हैं। बाह्य संसार से आँखें मूँद कर कोई भी कवि सफल नहीं हो सकता। उसे अपने परिवेश का चित्रण तो अवश्य करना पड़ता है । अपने वर्तमान समय, परिवेश, परिस्थितियों से बचकर, अलग रहकर, उन्हें भुलाकर, कोई भी कवि अपना काव्यसृजन नहीं कर सकता । वायवीय वातावरण में विचरण करके कवि अपनी कला में सजीवता नहीं ला सकता । कवि समाज का ही विशिष्ट अंग है, इसलिए वह समाज से विमुख नहीं हो सकता । अपने युग या समय का चित्रण करके ही वह युगद्रष्टा कलाकार कहला सकता है। आचार्यश्री यद्यपि दिनचर्या में आत्मकल्याण की साधना और स्वान्तःसुखाय की भावना को प्रमुखता देते हैं, किन्तु काव्यसृजन में वे समाज-देश-विदेश की ओर भी उन्मुख हो जाते हैं। 'मूकमाटी' में उन्होंने जिस युगबोध का चित्रण किया है, उससे यह विदित हो जाता है कि उनकी अन्तर्मुखी प्रवृत्ति का ही काव्य में बहिर्मुखीकरण हो गया है। अब यहाँ उन परिस्थितियों, समस्याओं और विषयों का विवेचन आवश्यक है जो आधुनिक हैं, सामयिक हैं, जिनका हमारे वर्तमान जीवन से सीधा सम्बन्ध है । हम जिन के भुक्तभोगी हैं, जो हमारे चारों ओर हैं और जिनसे हमें हर्ष - विषाद दोनों की प्राप्ति होती है - ऐसे विषयों पर व्यक्त किए विचार कवि के अपने हैं, नितान्त स्पष्ट एवं सर्वग्राह्य हैं । लोकतन्त्र और समाजवाद में आस्था की अभिव्यक्ति की शासन प्रणालियों में जो प्रणाली सर्वाधिक सफल और सर्वहितकारी मानी जा रही है वह है लोकतान्त्रिक प्रणाली । परतन्त्रता समाप्ति के बाद भारत में यही प्रणाली अपनाई गई है। विश्व में सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश हमारा भारत वर्ष ही है । कुछ लोग इसे भीड़तन्त्र कहकर इसका उपहास करते हैं फिर भी स्वतन्त्र विचारों की पद्धति होने के कारण इसे ही प्रासंगिक माना जा रहा है । साम्यवादी विचारधारा आज समाप्त होती जा रही है । सोवियत संघ का विघटन इसका सबसे बड़ा प्रमाण है। वहाँ की जनता पुराने ढाँचे को तोड़ कर, पुरानी रूढ़ियों को तोड़ कर आज स्वतन्त्र वातावरण में साँस ले रही है । विश्व के कई अन्य कम्युनिस्ट देश लोकतन्त्र की अवधारणा से प्रभावित हो रहे हैं । स्वतन्त्रता की चाह के कारण चीन जैसे विशाल देश में जागरण का शंखनाद हो चुका है। उस समय वहाँ चाहे विद्यार्थियों की भावनाओं का दमन कर दिया गया हो परन्तु भविष्य में वही आग फिर भड़क सकती है। लोकतन्त्र की राह पर चलने की दुर्दमनीय भावना उन में जाग चुकी है। 'ही' और 'भी' इन दो बीजाक्षरों के द्वारा कवि श्री विद्यासागरजी ने भारतीय सभ्यता और पाश्चात्य सभ्यता, लोकतन्त्र और राजतन्त्र, सदाचार और अनाचार, एकान्तवाद और अनेकान्तवाद, राम और रावण का चित्रण किया है और बहुत संक्षेप में लोकतन्त्र की व्याख्या द्वारा यह अभिमत भी प्रकट कर दिया है कि इस प्रणाली से व्यक्तियों की भावना का परिष्कार होता है और अधिकाधिक व्यक्तियों की हित साधना का लक्ष्य स्वीकार होता है। इसमें 'मैं' की भावना का नाश होता है और समूह की भावना का उदय होता है । कवि का कथन द्रष्टव्य है : 'भी' के आस-पास/बढ़ती-सी भीड़ लगती अवश्य, / किन्तु भीड़ नहीं, 'भी' लोकतन्त्र की रीढ़ है । / लोक में लोकतन्त्र का नीड़ तब तक सुरक्षित रहेगा / जब तक 'भी' श्वास लेता रहेगा ।
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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