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________________ का तन" चिन्ता, का तन" चिन्ता ?" (पृ. ३०६) मूकमाटी-मीमांसा :: 189 ६. शब्दों का विविधमुखी ज्ञान आचार्यश्री ने प्रस्तुत कृति में शब्दों की विविधमुखी व्याख्या, व्युत्पत्ति, नवीन निर्वचन व विपरीतार्थक शब्द बोध विभिन्नरूपेण किया है : (क) व्युत्पत्तिगत व्याख्या : काव्य में भी शब्दों का स्पष्टीकरण किया गया है। जैसे 'संसार' शब्द : "सृ धातु गति के अर्थ में आती है,/सं यानी समीचीन / सार यानी सरकना / जो सम्यक् सरकता है/ वह संसार कहलाता है।" (पृ. १६१ ) (ख) व्याकरण के आधार पर व्याख्या : पाणिनीय व्याकरण के धातु पाठ में तथा जैन परम्परागत व्याकरण ग्रन्थों में भी 'भू' धातु 'भू सत्तायां' (पृ. ३९९) अर्थ में है । इसी प्रकार 'स्वतन्त्रः कर्त्ता' व्याकरणशास्त्र का सूत्र है जिसका अर्थ है- "कर्त्ता स्वतन्त्र होता है" (पृ. ३४८) । इसके अतिरिक्त श-स-ष व्यंजनों को बीजाक्षर (पृ. ३९७) मान कर उनका उच्चारण आदि व्याकरणशास्त्रानुरूप किया है । (ग) सुन्दर निर्वचन : आचार्य यास्क ने 'निरुक्त' में शब्दों के अर्थों की सार्थकता सिद्ध की है । आचार्यप्रवर के प्रस्तुत ग्रन्थ में उसी शैली में अनेक शब्दों का बहुत सुन्दर निर्वचन है । जैसे- कुम्भकार (पृ. २८), गदहा (पृ. ४०), कृपाण (पृ. ७३), वसुधा (पृ. ८२), कम्बल (पृ. ९२), कायरता (पृ. ९४ एवं २३३), रसना (पृ. १८०), जलधि (पृ. १९९), नारी (पृ. २०२), महिला (पृ. २०२), अबला (पृ. २०३), कुमारी (पृ. २०४), स्त्री (पृ. २०५), सुता (पृ. २०५), दुहिता (पृ. २०५), मातृ (पृ. २०६), अंगना (पृ. २०७), स्वप्न (पृ. २९५), अवसर (पृ. २३१), नियति (पृ. ३४९), पुरुषार्थ (पृ. ३४९), कला (पृ. ३९६), मदद (पृ. ४५९), समाजवाद (पृ. ४६१), अपराधी (पृ. ४७४ एवं ४७७) इत्यादि । कहीं-कहीं तो एक शब्द के दो-दो व तीन-तीन निर्वचन भी किए हैं। नारी शब्द दो प्रकार से व्याख्यायित है : (अ) न + अरि, (ब) न + आरी : 66 'न अरि' नारी / अथवा / ये आरी नहीं हैं / सो नारी ।" (पृ. २०२ ) दुहिता शब्द का निर्वचन इस प्रकार है : "दो हित जिसमें निहित हों / वह 'दुहिता' कहलाती है ... स्व-पर-हित सम्पादिका / ... हित का दोहन करती रहती सो दुहिता कहलाती है ।" (पृ. २०५ - २०६) इसी प्रकार महिला (पृ. २०२), दोगला (पृ. १७५), अबला (पृ. २०३) आदि शब्दों की कई-कई व्याख्याएँ हैं । अबला शब्द की व्याख्या 'ब' तथा 'व' में अभेद मान कर की है : १. अव = ज्ञानज्योति को, ला=लाती है, वह अबला है; २. अब = वर्तमान में, ला- लाती है, वह अबला है; ३. बला=समस्या - संकट, अ=नहीं, अतः अबला है (पृ. २०३) । इस प्रकार यह निर्वचन शब्द - जगत् में सर्वथा नूतन प्रकाश है । (घ) शब्दों की विपरीतता : आचार्यप्रवर ने नवीन शब्दों के अर्थों की पद्धति का शोध किया है । शब्दों की शक्तियों व अर्थ को उसकी विपरीतता में भी खोजा है । जैसे - याद > दया (पृ. ३८), राही > हीरा (पृ. ५७), राख > खरा (पृ. ५७), लाभ>भला (पृ. ८७), नदी > दीन (पृ. १७८), नाली - लीना (पृ. १७८), धरती > तीरध ( तीरथ -
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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