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________________ पड़गाहता (स्वागत करता) है, जिसका सजीव चित्रण विस्तारपूर्वक किया गया है : “अभ्यागत का स्वागत प्रारम्भ हुआ : / 'भो स्वामिन् ! नमोस्तु ! नमोस्तु ! नमोस्तु ! / अत्र ! अत्र ! अत्र ! / तिष्ठ ! तिष्ठ ! तिष्ठ !' यूँ सम्बोधन - स्वागत के स्वर / दो-तीन बार दोहराये गये ... 'मन शुद्ध है/ वचन शुद्ध है / तन शुद्ध है / और / अन्न-पान शुद्ध है आइए स्वामिन् ! / भोजनालय में प्रवेश कीजिए' / और बिना पीठ दिखाये / आगे-आगे होता है पूरा परिवार । भीतर प्रवेश बाद / आसन-शुद्धि बताते हुए उच्चासन पर बैठने की प्रार्थना हुई / पात्र का आसन पर बैठना हुआ ।" मूकमाटी-मीमांसा :: 185 आहार विधि के पश्चात् दाता अतिथि के कमण्डलु में प्रासुक जल भरता है, क्योंकि : " जल" जो कि / अष्ट प्रहर तक ही / उपयोग में लाया जा सकता है, अनन्तर वह सदोष हो जाता है।” (पृ. ३४४) प्रक्रियाएँ जैनागमानुकूल व श्रावकों के लिए ज्ञेय हैं । (ग) जैनागम शब्दावली : लेश्याएँ, परिषह, उपसर्ग, अष्ट द्रव्य, अरिहन्त देव का स्वरूप, मोह का स्वरूप, मोक्ष का स्वरूप, इन्द्रियों का जड़त्व, मिट्टी का एक इन्द्रियत्व, निर्ग्रन्थ का स्वरूप, चार गतियाँ, तीर्थंकर आदिनाथ आदि शब्दों का प्रयोग जैनागमानुसार है । उदाहरणार्थ 'अष्ट- द्रव्य' के विषय में : " जल - चन्दन - अक्षत- - पुष्पों से / चरु - दीप- धूप-फलों से पूजन - कार्य पूर्ण हुआ ।” (पृ. ३२५) अरिहन्त भगवान् का स्वरूप इस प्रकार है : "जो मोह से मुक्त हो जीते हैं / राग- रोष से रोते हैं जनम-मरण-जरा-जीर्णता/ जिन्हें छू नहीं सकते अब (पृ. ३२२-३२४) (घ) दार्शनिकता : प्रसंगानुसार जैन दर्शन का भी उल्लेख है, जैसे : १. "सत्ता शाश्वत होती है ।" (पृ. ७) । २. " प्रति पदार्थ / अपने प्रति / कारक ही होता है ।" (पृ. ३९ ) क्षुधा सताती नहीं जिन्हें / जिनके प्राण प्यास से पीड़ित नहीं होते, ... सप्त भयों से मुक्त / जिन्हें अनन्त सौख्य मिला है... ... अष्टादश दोषों से दूर "।” (पृ. ३२६-३२७) ३. आत्मा से कर्मों का संश्लेषण व विश्लेषण प्रकरण (पृ. १५) प्रारम्भ करके छोड़ दिया है, क्योंकि आजकल इसे कोई ध्यान से नहीं सुनता । ४. 'सप्तभंगी' का उल्लेख करके एकान्तवाद व स्याद्वाद के अन्तर को स्पष्ट किया है :
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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