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xxii :: मूकमाटी-मीमांसा
प्र. मा.
आ. वि. - मिथ्या का अर्थ अभाव नहीं है ।
प्र. मा. हाँ! मैं यहीं आ रहा हूँ ।
आ.वि. - हाँ ! मिथ्या का अर्थ एक प्रकार से विलोम होना है।
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जब यह शब्द निकला और उसने बोध कराया तब एकान्ततः झूठ कैसे मान लिया जायगा ? कुछ तो वह है। ठीक है। शंकराचार्य के विषय में एक कहानी है। वे कहीं जा रहे थे कि उनके पीछे एक दौड़ता हुआ हाथी लग गया। यह देखकर शंकराचार्य जान बचाने के लिए भागने लगे । इसी समय उनके द्वारा शिक्षित और दीक्षित व्यक्ति आया और देखा कि शंकराचार्य भाग रहे हैं। उसने कहा कि स्वामिन् ! आपके अनुसार जब सारा संसार झूठा है, तब क्या यह हाथी सच्चा है, जो आप इस से डर के भाग रहे हैं ? शंकराचार्य ने कहा कि उनका भागना भी कहाँ सच्चा है, वह भी मिथ्या है। मतलब यह कि मिथ्या की अवधारणा नितान्त सूक्ष्म है । विदेशी अर्थात् पश्चिमी दार्शनिकों ने मिथ्या का अर्थ अभाव नहीं माना है।
प्र. मा. -
तो क्या आप इसको आंशिक मिथ्या या आंशिक सत्य मानते हैं?
आ. वि. - नहीं । इसको हम यह कहेंगे कि जैसे एक तो अभाव है और दूसरा विभाव । तो जल का अभाव अत्यन्ताभाव नहीं है । हिम, जल का विभावीकरण है । और विभाव के द्वारा हमेशा कष्ट होता है । इसको मिथ्यात्व बोलते हैं।
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प्र. मा. तो जल का हिम जो है, वह निषेध नहीं है ?
आ. वि.- नहीं । अभाव नहीं है, विभाव है । विभाव रूप हिम को पुनः तरल बना दो । जल को तरल माना है स्वभावत: । जब जल रहेगा तब तरल रहेगा, बहाव रहेगा। लेकिन, जब तरल के स्थान पर सघन हो जाएगा तब वह विभाव हो जाएगा और विभाव होने के कारण न नाव उसमें डूबेगी और न तैरेगी, किन्तु अटक जाएगी।
प्र. मा. - समय काफी हो रहा है। मैं अन्तिम प्रश्न पूछना चाह रहा हूँ- क्या आप और कोई महाकाव्य लिख रहे हैं या लिखेंगे ? हमारी उम्मीद है, हम चाहते हैं कि इससे भी बड़ी चीज़ आप लिखें ।
आ. वि. - माँग तो आ रही है, लेकिन उस माँग की ...
प्र. मा. - इच्छा आपके मन में जागे, फिर ज्ञान हो और फिर क्रिया हो । जो आपका काव्य ('मूकमाटी') है वह हिन्दी के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है, हम ये मानते हैं। ऐसी कोई चीज़ पहले नहीं लिखी गई और ये कई दृष्टियों से अभूतपूर्व रचना है। मैंने तो कई महाकाव्य पढ़े हैं। कई भाषाओं में पढ़े हैं। मैंने इसकी तुलना अन्य कई महाकाव्यों से कराना चाही है - 'गिलगिमेश' पहला महाकाव्य है जो पश्चिम में माना जाता है कि ईंटों के अन्दर लिखा प्रलय के बारे में कुछ मिलता है । और मिल्टन के 'पैराडाईज़ लॉस्ट' और डान्टे की 'डिवाइन कामेडी' - इन सब से तुलना करते हुए हम चलते हैं, विश्व के महाकाव्यों के इतिहास में हम देख रहे हैं कि यह अलग चीज़ है | अरविन्द की 'सावित्री' कुछ-कुछ इसके करीब की रचना है, फिर 'कामायनी' है, परन्तु ये उससे भी भिन्न है । ये आपने बहुत बड़ा महत्त्व का ग्रन्थ लिखा है, इतना ही मैं कहना चाहता हूँ। मैं तो लिखूँगा ही जो कुछ लिखना है ।
हम ये चाहते हैं कि इसका अधिकाधिक लोगों में प्रचार-प्रसार हो । इसके द्वारा लोगों को काव्य का एक नया आयाम खुल जाता है। अभी तक काव्य के सम्बन्ध में जो हमारी धारणा थी उसमें एक नया कल्पना - लोक, आलोक उद्घाटित हुआ है। कल्पना का क्या योग मानते हैं आप काव्य में ?