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168 :: मूकमाटी-मीमांसा
"सब तनों में 'वर'-तन" (पृ. ३३२) -(बर्तन) . “'नि' यानी निज में हो/ यति' यानी यतन-स्थिरता है
अपने में लीन होना ही 'नियति' है।" (पृ. ३४९) 0 “ 'पुरुष' यानी आत्मा -परमात्मा है/ 'अर्थ' यानी प्राप्तव्य-प्रयोजन है
आत्मा को छोड़कर/सब पदार्थों को विस्मृत करना ही
सही पुरुषार्थ है।” (पृ. ३४९) इस प्रकार व्युत्पत्तियाँ पुस्तक में भरी पड़ी हैं। इनमें शब्दों के अर्थ देने की जो चेष्टा है वह रचना की अध्यात्मपरक चेष्टा से ही जुड़ी हुई है । तथापि, इनमें चमत्कृत करने से अधिक कुछ की प्राप्ति कदाचित् ही होती है। यह रूपवादी आग्रह एक सोद्देश्यपूर्ण रचना में एक सीमा तक ही सार्थक हो सकता है, उससे आगे बढ़ने पर इसका प्रभाव क्षीण हो सकता है । अवश्य ये व्युत्पत्तियाँ दर्शन-ज्ञान के उद्देश्य से हैं, किन्तु इनके प्रयोग अधिक सावधानी की माँग करते
'मूकमाटी' में कथानक नाम मात्र का है। इसलिए चारित्रिक विशेषता-सम्पन्न कोई पात्र भी नहीं है। इसका मूल स्वर मानव चरित्र के उत्थान का है । इसमें दार्शनिक चिन्तन का प्राधान्य हैं। कवि के पास सुनिश्चित चिन्तन एवं दर्शन है :
"बहिर्मुखी या बहुमुखी प्रतिभा ही/दर्शन का पान करती है, अन्तर्मुखी, बन्दमुखी चिदाभा/निरंजन का गान करती है। दर्शन का आयुध शब्द है-विचार,/अध्यात्म निरायुध होता है सर्वथा स्तब्ध-निर्विचार !/एक ज्ञान है, ज्ञेय भी
एक ध्यान है, ध्येय भी।” (पृ. २८८-२८९) यह कहते हुए भी कवि ने अभिव्यक्ति के लिए दर्शन को ही ग्रहण किया है।
जटिल दार्शनिक अभिव्यक्तियों के बीच सामान्य जीवन के जाने-पहचाने उदाहरण देकर कवि ने पाठक को दर्शन-भार से यहाँ-वहाँ मुक्त भी किया है :
"भूखी गाय के सम्मुख/जब घास-फूस चारा डाला जाता है/ऊपर मुख उठा कर . रक्षकों के आभरणों-आभूषणों को/अंगों-उपांगों को नहीं देखती वह।” (पृ. ३३३)
"बबूल के ठूठ की भाँति/मान का मूल कड़ा होता है।" (पृ. १३१)
“पाक-शास्त्री की पहली रोटी/करड़ी क्यों बनती ,बेटा !" (पृ. ११) इसी प्रकार श्वान और सिंह के चरित्रगत अन्तर की व्याख्या में गूढ़ तथ्य प्रकट किए गए हैं :
“मीठे दही से ही नहीं,/खट्टे से भी/समुचित मन्थन हो
नवनीत का लाभ अवश्य होता है।" (पृ. १३-१४) इस जैसी उक्तियों में भी ज्ञान का स्वरूप वैसा ही गम्भीर है जैसा कि निम्न पंक्तियों में है :
"परा-वाक् की परम्परा/पुरा अश्रुता रही, अपरिचिता/लौकिक शास्त्रानुसार वह योगिगम्या मानी है,/मूलोद्गमा हो, ऊर्ध्वानना