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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 137 भाग्यवान् भाग्य-विधाता हो/कुम्भकार कहलाता है।" (पृ. २८) 'दया' का 'प्रतिलोम ‘याद, सदैव दया की याद दिलाता है । इसी प्रकार 'गदहा' का अर्थ 'रोग-हारक' है। और गदहा भी धन्य है पर-दुख या पर-भार वहन करके । 'रस्सी' भी रस-सी है। और संयमी आदमी' ही 'आ दमी' है। ‘कृपाण' को दुःख है कि उसमें 'कृपा''न' है । और यदि भाव नहीं तो ‘भावना' भी भाव 'ना' है। 'लाभ' विलोम में भला' ही करता है। यदि ऋजुता नहीं तो 'नमन' भी 'न मन-सा हो जाता है। और विरोध में नम''न' की उद्दण्डता का पोषक भी । परोपकारी मरकर भी परहित करते हैं तभी तो वे 'मर हम' के भाव से 'मरहम' बनते हैं। देखिए 'दो-गला' आज जो गाली है, उसके भी कितने विविध भाव व्यक्त कर दिए हैं – एक है द्विभाषी होना, दूसरा दुष्ट प्रकृति का और तीसरा अहं को दो गला । 'नदी' यदि जलहीन है तो 'दीन' हो जाती है । कवि ने नारी के विविध पर्यायवाची शब्दों के उत्तम भावार्थ एक-एक अक्षर को लेकर प्रस्तुत किए हैं। 'महिला' धरती के प्रति आस्था जगाती है तो 'अबला' जीवन को जाग्रत करती है । 'कुमारी' धरा सम्पदा-सम्पन्नता की प्रतीक है तो 'स्त्री' पुरुष को कुशल संयत बनाती है। 'सुता' सुख-सुविधाओं का स्रोत है तो 'दुहिता' स्वयं का हित करते हुए पतित पति का भी हित करती है । 'मातृ' शब्द सम्पूर्ण ज्ञाता का प्रतीक है। ‘अंगना' द्वारा अंग''ना' है । इस प्रकार के अन्य अनेक शब्द प्रस्तुत किए जा सकते हैं। कवि ने भाषा में मुहावरे, कहावतें और सबसे अधिक सूक्तियों का प्रयोग किया है । इनमें ग्रामीण तथा परम्परागत मुहावरे आदि भी हैं। कृति में उनकी बहुलता है पर कुछ उदाहरण देखिए : _ "जैसी संगति मिलती है/वैसी मति होती है।" (पृ. ८); “आस्था के बिना रास्ता नहीं" (पृ. १०); "पूत का लक्षण पालने में' (पृ. १४); "बायें हिरण/दायें जाय-/लंका जीत/राम घर आय' (पृ. २५); “पीड़ा की अति ही/पीड़ा की इति है'(पृ. ३३); "पापी से नहीं/पाप से,/पंकज से नहीं/पंक से/घृणा करो"(पृ. ५०५१); "ग्रन्थि हिंसा की सम्पादिका है" (पृ. ६४); "कूप मण्डूक-सी"/स्थिति है मेरी" (पृ. ६७); "मुँह में राम/ बगल में छुरी।" (पृ. ७२); "कम बलवाले ही/कम्बलवाले हैं" (पृ. ९२); “मन माया की खान है" (पृ. ९७); "बोध के सिंचन बिना/शब्दों के पौधे ये कभी लहलहाते नहीं" (पृ. १०६); “आधा भोजन कीजिए/दुगणा पानी पीव ।/ तिगुणा श्रम चउगुणी हँसी/वर्ष सवा सौ जीव !" (पृ. १३३); "दाल नहीं गलना," "चाल नहीं चलना" एवं “करवट बदलना" (पृ. १३४); "आँख की पुतलियाँ/लाल-लाल तेजाबी बन गईं" (पृ. १३४); "नाक में दम कर रखना" (पृ. १३५); “आमद कम खर्चा ज्यादा/लक्षण है मिट जाने का/कूबत कम गुस्सा ज्यादा/लक्षण है पिट जाने का'(पृ. १३५); “खोट पर चोट होना" (पृ. १६५); “गुरवेल तो कड़वी होती ही है/और नीम पर चढ़ी हो/तो कहना ही क्या !'' (पृ. २३६); "प्राय: अपराधी-जन बच जाते/निरपराध ही पिट जाते'' (पृ. २७१); “अग्निपरीक्षा के बिना आज तक/किसी को भी मुक्ति मिली नहीं" (पृ. २७५); "अपनी आँखों की लाली/अपने को नहीं दिखती है। (पृ. २७६); "स्वस्थ ज्ञान ही अध्यात्म है"(पृ. २८८); "वैराग्य की दशा में/स्वागत-आभार भी/भार लगता है" (पृ. ३५३); "मात्र दमन की प्रक्रिया से/कोई भी क्रिया/फलवती नहीं होती"(पृ. ३९१); "गागर में सागर धारण करना"(पृ. ४५३); "जब तक जीवित है आतंकवाद/शान्ति का श्वास ले नहीं सकती/धरती यह" (पृ. ४४१); “काई-लगे पाषाण पर/पद फिसलता ही है !" (पृ. ११); "दाँत मिले तो चने नहीं,/चने मिले तो दाँत नहीं" (पृ. ३१८); "बाल की खाल निकालना"(पृ. १५२); "आचरण के सामने आते ही/प्राय: चरण थम जाते हैं" (पृ. ४६२)। कवि ने गिरी, छौंक, निब, महेरी आदि ग्राम्य शब्दों का प्रयोग किया है तो माहौल, यक़ीन, मरहम, हवस जैसे
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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