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126 :: मूकमाटी-मीमांसा प्रतिपादित करता है । यही संसार को सुचारु रूप से चलने में मदद करती है :
"लक्ष्मण-रेखा का उल्लंघन/रावण हो या सीता
राम ही क्यों न हों/दण्डित करेगा ही!" (पृ. २१७) कुम्हार राजा से निवेदन करता है कि वे मोतियों को भेंट रूप स्वीकार करके ले जाएँ । राजा स्वीकार करता है वह भेंट । कुम्हार की फटी बोरियों में भरी मोती राशि बाहर ऐसे झाँका करती हैं जैसे कोई नव विवाहिता पूँघट से झाँक रही हो ।
सागर से उठनेवाली बदलियों की कालिमा, घनी कालिमा के वर्णन में कवि लेश्याओं द्वारा मानव मन के कलुषित मनोभावों को ही मानों प्रस्तुत करता है। दुष्टों के कलुषित स्वभाव की एक झलक देखिए :
"घमण्ड के अखण्ड पिण्ड बने हैं,/इनका हृदय अदय का निलय बना है, रह-रह कर कलह/करते ही रहते हैं ये,
बिना कलह भोजन पचता ही नहीं इन्हें!" (पृ. २२८) कवि सूर्य और सागर के सन्दर्भ में भले-बुरे व्यक्तियों के स्वभाव का मूल्यांकन करता चलता है । पाखण्ड के पक्षधरों की अवहेलना करता है । पुनः, कवि राहू द्वारा दिन-दहाड़े सब कुछ हड़पने की बात कहकर हड़पने की वृत्ति पर प्रहार करता है।
यह सत्य है कि दुष्ट शक्ति के कारण सब कुछ हड़प लेता है पर उसका मुँह अधिक ही काला हो जाता है। कवि सन्ध्या के पश्चात् अवतरित रात्रि का शब्द चित्र बड़े ही वास्तविक रूप में खींच पाया है। पूरा प्रसंग हमारे समक्ष रात्रि के अन्धकार की भयानकता को सादृश्य बना देता है । कविता और प्रकृति के सजीव चित्रण का यह एक अनूठा उदाहरण
इसी सन्दर्भ में महापुरुषों के लक्षण को एवं उनके सरल स्वभाव को प्रस्तुत किया है :
"महापुरुष प्रकाश में नहीं आते/आना भी नहीं चाहते, प्रकाश-प्रदान में ही/उन्हें रस आता है।" (पृ. २४५)
और जैसे आत्म भाव प्रकट करके आत्मकल्याण पर दृष्टि केन्द्रित करके कह रहे हैं :
"मैं यथाकार बनना चाहता हूँ/व्यथाकार नहीं।/और
मैं तथाकार बनना चाहता हूँ/कथाकार नहीं।” (पृ. २४५) इसी समय वर्षा प्रारम्भ होती है । वह रौद्ररूप धारण कर ताण्डव ही करने लगी है । इस वर्षा और रौद्ररूप का वर्णन इतना सजीव है कि लगता है मानों हम ऐसे तूफानी झंझा को महसूस कर रहे हैं।
ओला-वृष्टि का ताण्डव रावण-सा कहर बरसा रहा है । कवि की लेखनी सौर और भूमण्डल की तुलना करने लगी। वह विज्ञान की तुलना करता है और स्पष्ट करता है कि आकाश की ओर उठने वाले के चरण धरती से न छूट जाएँ, अन्यथा सब डगमगा जाएगा । और ऊपर वाले का दिमाग भी धरती को देखे, अन्यथा अभिमान से टूट जाएगा । कवि वर्तमान आर्यभट्ट या रोहिणी उपग्रहों की नवीनतम उपमाओं को प्रस्तुत कर मानों इस तथ्य को साबित करता है कि साधु परम्पराओं को रूढ़ियों के संकुचित दायरे में नहीं बाँधता । वह दीर्घ द्रष्टा है, युग द्रष्टा भी है। कवि आकाश में चल