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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 101 अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति से मानव मात्र की कल्याण कामना 'मूकमाटी' का महान् उद्देश्य है । श्रमण संस्कृति का मूल है - अहिंसा । अहिंसा की उपासना निर्ग्रन्थ साधु का मूल धर्म है (पृ. ६४-६५) । इसीलिए मानव मन के विषयजन्य कषायादि मनोविकारों (आतंकवाद) को जीतकर सदाचरण युक्त अनन्तजीवन की शुरुआत करने की प्रेरणा मूकमाटी देती है। “श्रमण-साधना के विषय में / और / अक्षय सुख-सम्बन्ध में / विश्वास नहीं हो रहा हो / तो.../आचरण की दृष्टि से / मैं जहाँ पर हूँ / वहाँ आकर देखो मुझे,... / इन / शब्दों पर विश्वास लाओ, / हाँ, हाँ !! / विश्वास को अनुभूति मिलेगी/...मगर/ मार्ग में नहीं मंजिल पर " (पृ. ४८७-४८८) – ये शब्द हैं पूज्यपाद नीराग सन्त के । यही बात भगवान् श्रीकृष्ण ने गीता में अर्जुन से कही है। श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि जो मनुष्य दोषदृष्टि से रहित होकर श्रद्धापूर्वक मेरे मत का सदा आचरण करते हैं वे भी सम्पूर्ण कर्मों के बन्धन से मुक्त हो जाते हैं : - भारतीय संस्कृति की ‘सब सुखी रहें, सब निरोग हों, सबका कल्याण हो, कोई दुखी न रहे' की उदात्त भावना भी 'मूकमाटी' ने यह स्वर दिया है : "यहाँ "सब का सदा/ जीवन बने मंगलमय / छा जावे सुख-छाँव, / सबके सब टलें - / अमंगल भाव !" (पृ. ४७८) "ये मे मतमिंदं नित्यं अनुतिष्ठन्ति मानवाः । श्रद्धावन्तोऽनसूयन्तो मुच्यन्ते तेऽपि कर्मभिः || ” (गीता-३/३१) मूल- विचारणा-बिन्दु वैचारिक दृष्टि से मूकमाटी' का पटल अत्यन्त विस्तृत है। धर्म, दर्शन, अध्यात्म, संस्कृति, साहित्य, संगीत, कला, विज्ञान, काव्य, व्याकरण, चिकित्सा आदि सभी तो विद्यमान हैं इसमें अपनी पूर्णता में । धर्म के बारे में कवि के विचार : ם O O O 'हम निर्ग्रन्थ- पन्थ के पथिक हैं ।" (पृ. ६४ ) “धम्मो दया - विसुद्धो ।” (पृ. ७०, ७१) 66 'धम्मं सरणं गच्छामि । " (पृ. ७० ) 44 धम्मं सरणं पव्वज्जामि । " (पृ. ७५) O “सल्लेखना, यानी / काय और कषाय को / कृश करना...।” (पृ. ८७) "दयाविसुद्धो धम्मो ।” (पृ. ८८) O ० " खम्मामि, खमंतु मे । " (पृ. १०५) अध्यात्मविषयक विचार हैं : "स्वस्तिक से अंकित हृदय से / अध्यात्म का झरना झरता है ।... बिना अध्यात्म, दर्शन का दर्शन नहीं / ... स्वस्थ ज्ञान ही अध्यात्म है।" (पृ. २८८) दर्शन के सम्बन्ध में कवि की मान्यता है : दर्शन : "दर्शन का स्रोत मस्तक है... / दर्शन का आयुध शब्द है- विचार, (वह) ज्ञान है, ज्ञेय भी ।” (पृ.२८८-२८९) “जो सम्यक् सरकता है ।” (पृ. १६१) संसार : भारतीय संस्कृति : “सुख - शान्ति की प्रवेशिका है ।" (पृ. १०३)
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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