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नीति, दर्शन और अध्यात्म का ग्रन्थ : 'मूकमाटी'
डॉ. प्रेमसागर जैन 'मूकमाटी' शास्त्रीय काव्य है अर्थात् शास्त्र है और काव्य भी । शास्त्र में रूखे सिद्धान्त होते हैं। रूखे भी ऐसेवैसे नहीं, बहुत रूखे । वैज्ञानिक दृष्टि से उनका तार हृदय से नहीं, मस्तिष्क से जुड़ा होता है । अत: उन्हें पचाना तो दूर, समझना भी मुश्किल हो जाता है। वे साहित्य नहीं बन पाते । साहित्य के लिए भावोन्मेष होना अनिवार्य है । दर्शन हो, सिद्धान्त हो या अन्य कोई रूक्ष विषय हो, भावोन्मेष हो जाने पर साहित्य की कोटि में आ जाते हैं। 'मूकमाटी' के अनेक स्थलों में भावोन्मेष हुआ है किन्तु संख्या अल्प ही है। एक उद्धरण दे रहा हूँ :
"परिणाम-परिधि से/अभिराम-अवधि से/अब यह बचना चाहता है, प्रभो !/रूप-सरस से/गन्ध परस से परे अपनी रचना चाहता है, विभो !/संग-रहित हो/जंग-रहित हो
शुद्ध लौह अब/ध्यान-दाह में बस/पचना चाहता है, प्रभो!" (पृ. २८५) दूसरा स्थल है :
"जिन आँखों में/अतीत का ओझल जीवन ही नहीं, आगत-जीवन भी स्वप्निल-सा/धुंधला-धुंधला-सा तैरने लगा, और/भावी, सम्भावित शंकिल-सा/कुल मिला कर सब-कुछ
धूमिल-धूमिल-सा/बोझिल-सा झलकने लगा।” (पृ. २९४) 'मूकमाटी' नीति, दर्शन और अध्यात्म का ग्रन्थ है । इस की खूबी है भाषा की सरलता । उस में सहजता है, वह भावों के पीछे-पीछे चलती है । दर्शन और अध्यात्म गूढ विषय हैं। उनकी सहज अभिव्यक्ति वही कर सकता है, जिसने उसे पचाया हो । 'मूकमाटी' इस दृष्टि से एक उत्तम काव्य है । सामान्य पाठक भी उन्हें आसानी से समझ लेता है। समझना और बात है, दिल की तलहटियों को स्पर्श करना कुछ और है । लेखक ने दृष्टान्त अलंकारों के माध्यम से इस चुनौती को स्वीकारा है । एक दृष्टान्त देखिए :
"तैरने वाला तैरता है सरवर में/भीतरी नहीं, बाहरी दृश्य ही दिखते हैं उसे ।/वहीं पर दूसरा डुबकी लगाता है, सरवर का भीतरी भाग/भासित होता है उसे,
बहिर्जगत् का सम्बन्ध टूट जाता है।" (पृ. २८९) दर्शन और अध्यात्म की गहरी डूब और ऊपर-ऊपर तैरने का अन्तर दिखाया है। एक दूसरा दृष्टान्त है :
"इस युग के/दो मानव/अपने आप को/खोना चाहते हैंएक/भोग-राग को/मद्य-पान को/चुनता है; और एक/योग-त्याग को/आत्म-ध्यान को/धुनता है । कुछ ही क्षणों में/दोनों होते/विकल्पों से मुक्त । फिर क्या कहना!/एक शव के समान/निरा पड़ा है, और एक/शिव के समान/खरा उतरा है।" (पृ. २८६)