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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 95 'मूक माटी' को महाकाव्य की संज्ञा दी गई है । महाकाव्य के अनुरूप प्राकृतिक सौन्दर्य का चित्रण इसमें है। इसमें माटी को नायिका और कुम्भकार को नायक माना गया है । इस काव्य में आध्यात्मिक प्रकार का रोमांस है । समकालीन युगबोध का अंकन इस काव्य के पृष्ठ भाग में मिलता है, जहाँ आतंकवाद का संकेत है। शास्त्रीय रूप से यह काव्य चाहे महाकाव्य हो या न हो परन्तु इसमें एक उदात्त विषय को लिया गया है जिसे उदात्त भाषा में उदात्त ढंग से अभिव्यक्ति मिली है, अत: आज के साहित्य की एक प्रमुख कृति के रूप में इस रचना को लिया जाएगा। इस काव्य में उस माटी को लिया गया है जो मूक है, जिसकी संवेदना मौन है परन्तु फिर भी वह सब का आधार है । यह साधारण माटी है जो जन सामान्य का प्रतीक है जिसमें सामन्तीय गन्ध नहीं है। अत: इसकी व्याख्या करने के लिए हमें कृति की राह से ही गुज़रना पड़ेगा। नई कृतियों को परखने के लिए पुराने मापदण्ड सार्थक सिद्ध नहीं हो सकते हैं। 'मूकमाटी' की महिमा डॉ. रवीन्द्र भ्रमर आचार्य श्री विद्यासागर की विलक्षण कृति 'मूकमाटी' को दूसरी बार पढ़ने का मन बनाया। कुछ दो वर्ष पूर्व, पहली बार इसका पारायण किया था। गुरु कृपा से दूसरी बार प्रेरणा हुई और इस काव्य सरोवर का अवगाहन करने का प्रयास नए सिरे से किया। माटी की संवेदना, सर्जना शक्ति और दार्शनिक चिन्तना को आधार बनाकर एक ऐसे काव्य की संरचना होना आह्लादकारी है । इसे मृत्तिका मंगल का भी काव्य कहा जा सकता है । माटी और कुम्भकार का सम्बन्ध सनातन है। कुम्भकार माटी से उस मंगल घट की रचना करता है जो जल से पूरित होकर जन-जन की तृषा का निवारण करने को उद्यत रहता है। विधाता रूपी कुम्भकार माटी से उस मंगल मूर्ति की रचना करता है जो प्राणों से विस्फूर्जित होकर मानव की संज्ञा प्राप्त करता है और सत्कर्मों से आवेष्टित होकर लोक कल्याण का निमित्त बनता है। आचार्य श्री विद्यासागर ने कुछ ऐसे ही विचार तत्त्वों का संगुम्फन करके 'मूकमाटी' को प्राणवान् बना दिया है। इस कृति को 'महाकाव्य' की संज्ञा दी गई है । महाकाव्य के समस्त लक्षण उपलब्ध न भी हों तो श्रेष्ठ काव्य के गुणधर्म इसमें विन्यस्त हैं । मुक्त छन्द की रचना होने के बावजूद मार्मिक उक्तियों, रोचक प्रसंगों, प्रकृति के मनोहर चित्रों, काव्य बिम्बों और अभिव्यंजना की अन्तर्वर्ती लय के कारण यह कृति एक अनहद आध्यात्मिक संगीत बन गई है । और हाँ, आध्यात्मिकता अथवा दार्शनिकता के कारण इसका काव्य रूप सृजन के नए आयाम ग्रहण कर लेता है। इन्हीं शब्दों के माध्यम से 'मूक माटी' के कर्ता आचार्य श्री विद्यासागरजी के प्रति मेरी विनम्र प्रणति । पृष्ठ ९५५-४५३ जब आग कीनरीको पार करआये स....... ... नीरको धारणकरे सोधरगी नीरका पालन करेसो-धरी ।
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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