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________________ :: 73 मूकमाटी-मीमांसा वस्तुत: अनुभूति और अभिव्यक्ति के समुचित परिपाक से ही रचना प्रभावी बनती है । 'क्रौचे' जब अभिव्यंजना पर बल देता है, तो वह इसी की ओर इशारा करता है और यही वह तत्त्व है जिसे भारतीय काव्यशास्त्र अलंकार और अलंकार्य का अभेदत्व मानता है । भाषा की पालकी में भाव ढुलते हैं, किन्तु पालकी भी तो बैठने वाले की हैसियत का बखान करती है । छायावादी कविता, हालावादी कविता और राष्ट्रीय भावधारा की कविता का आस्वादन और अन्तर ह उसकी भाषाई शक्ति सम्पदा द्वारा ही कर पाते हैं। 'मूकमाटी' का कवि वीतरागी, मनश्चेतना सम्पन्न आध्यात्मिक विचार चिन्तना से अनुप्राणित है, तो उसकी शब्दावली में वैसा शुभ्र वातावरण निर्माण करने की ताकत होगी ही । कवि भाषा दीपज्योति की तरह प्रकाशवान्, आलोकवान् दृष्टिगोचर होगी ही । आचार्य विद्यासागर का शब्द-शिल्प निराला है । आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कबीर को वाणी का डिक्टेटर कहा था और माना था कि कबीर में वह भाषाई सामर्थ्य है कि वह भाषा को सीधे नहीं तो दरेरा देकर चला लेते हैं । 'मूकमाटी' के कवि में शब्दों को अपने भावों के अनुरूप ढालकर, उसे तोड़कर, मरोड़कर, फोड़कर जैसा चाहे, वैसा अर्थ निकाल लेने का बुद्धि कौशल है, भाषाई शक्ति है । गधा को गदहा भी कहा जाता है, जिसका अर्थ एक चौपाए जानवर से लिया जाता है, किन्तु कवि उसे गद+हा के रूप में विभक्त करता है और 'गद' याने रोग तथा 'हा' याने हारक अर्थात् रोग का हारक बनने की अभिलाषा से भर देता है : इसी तरह : या अथवा " मेरा नाम सार्थक हो प्रभो ! / यानी / 'गद' का अर्थ है रोग 'हा' 'का अर्थ है हारक/ मैं सबके रोगों का हन्ता बनूँ ।" (पृ. ४० ) " 'कम बलवाले ही / कम्बलवाले होते हैं ।" (पृ. ९२) "किसलय ये किसलिए / किस लय में गीत गाते हैं ? किस वलय में से आ/ किस वलय में क्रीत जाते हैं ।” (पृ. १४१) "इनका सार्थक नाम है 'नारी' / यानी - /' न अरि' नारी / अथवा ये आरी नहीं हैं / सोनारी । " (पृ. २०२ ) इन जैसे चमत्कारिक शाब्दिक खेल भरे पड़े हैं । कवि ने लोक जीवन से अपनी भाषा का श्रृंगार किया है, अत: जन-जीवन में प्रचलित कहावतें, मुहावरे, लोकोक्तियाँ और सूक्तियाँ काव्य में यत्र-तत्र बिखरी पड़ी हैं। 'पूत का लक्षण पालने में" (पृ. १४), 'दाल नहीं गलना' (पृ. १३४), 'मुँह में राम / बगल में छुरी' (पृ. ७२) के साथ 'आमद कम खर्चा ज्यादा / लक्षण है मिट जाने का / कूबत कम गुस्सा ज्यादा / लक्षण है पिट जाने का' (पृ. १३५), 'आधा भोजन कीजिए / दुगुणा पानी पीव !" / तिगुणा श्रम चउगुणी हँसी / वर्ष सवा सौ जीव !' (पृ. १३३) जैसे लोक प्रचलित जुमले भी पाए जाते हैं। 'बायें हिरण/दायें जाय - / लंका जीत / राम घर आय' (पृ. २५) जैसी सुगन सूचक उक्तियाँ भी पाई जाती हैं । प्रकृति और उसका परिवेश रचना की पृष्ठभूमि में है । अतः प्रकृति चित्रण की भरमार है। सूर्योदय का यह चित्र कवि की कोमल कल्पना ही नहीं, उसकी कोमलकान्त पदावली का भी द्योतक है :
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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