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की भेद रेखा स्पष्ट कर दी है :
" अध्यात्म स्वाधीन नयन है / दर्शन पराधीन उपनयन । ... कभी सत्य - रूप कभी असत्य - रूप / होता है दर्शन, जबकि अध्यात्म सदा सत्य चिद्रूप ही / भास्वत होता है ।" (पृ. २८८)
मूकमाटी-मीमांसा :: 61
काव्य का चतुर्थ खण्ड कथा - शिल्प का उत्तम नमूना है । इस कृति में सन्त, अनुभूतियों का जो संगम हुआ है, वह महाकाव्य को अप्रतिम बनाता है । प्रकाशन और प्रस्तुतीकरण भी नयनाभिराम
है।
[सम्पादक- 'प्राकृत विद्या, उदयपुर, राजस्थान, अक्टूबर, १९८९ ]
पृष्ठ ४८५ समग्र संसार ही दुःख से भरपूर है,...... अपना अनुभव बतासको
र- तीनों की
कवि, कथाकार -
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