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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 59 दर्शन और अध्यात्म जीवन के दो पद हैं। इन दोनों की अगाधता ही मानव का ध्येय है । इन दोनों के अभाव में मानव शव के समान है और दोनों की उपलब्धि ही शिवत्व की उपलब्धि है : "स्वस्थ ज्ञान ही अध्यात्म है ।/अनेक संकल्प-विकल्पों में व्यस्त जीवन दर्शन का होता है ।/बहिर्मुखी या बहुमुखी प्रतिभा ही दर्शन का पान करती है,/अन्तर्मुखी, बन्दमुखी चिदाभा निरंजन का गान करती है।” (पृ. २८८) साधना की यह अवस्था शारीरिक परिवर्तन करती है : “आज तक/इस तन को मृदुता ही रुचती आई,/परन्तु/तब संसार-पथ था यह पथ उससे विपरीत है ना!/यहाँ पर आत्मा की जीत है ना! इस पथ का सम्बन्ध/तन से नहीं है,/तन गौण, चेतन काम्य है मृदु और काठिन्य में साम्य है, यहाँ/और/यह हृदय हमारा/कितना कोमल है, इतना कोमल है क्या/तुम्हारा यह उपरिल तन ?" (पृ. ३१०-३११) भारतीय दर्शन में पुरुषार्थ के साथ-साथ आशा का भी गुण जुड़ा हुआ है । इसमें दया, माया, ममता, सहानुभूति, और करुणा का सम्मिश्रण है। साधना के क्षेत्र में प्रकृति मानव की सहचरी सिद्ध हुई है। प्रकृति के विपरीत चलकर साधना निरुद्देश्य होती है : "प्रकृति से विपरीत चलना/साधना की रीत नहीं है। बिना प्रीति, विरति का पलना/साधना की जीत नहीं।” (पृ. ३९१) चतुर्थ अध्याय का अध्यात्म फलक बड़ा ही विस्तृत है । इसके समग्र सौन्दर्य को एक स्थान पर समेटना या आत्मसात् करना सहज नहीं है। ___ कुम्भ की कुशलता ही शिल्पी की कुशलता है । यही शिल्पी का सर्वाधिक ग्राह्य उल्लास है। यही सन्त समागम की सार्थकता है । इसके उपरान्त स्रष्टा को संयम, सन्तोष और शान्ति का अनुभव होता है । आत्मोद्धार के लिए स्वयं अपने को कसना होगा । गुरु तो मार्गदर्शक है, क्योंकि बन्धन रूप तन, मन और वचन का आमूल मिट जाना ही मोक्ष है। इसी की शुद्ध दशा में अविनश्वर सुख होता है। ये कुछ स्फुरण हैं 'मूकमाटी' के वस्तु विन्यास और उसकी काव्य गरिमा के । ऐसे ही तमाम तत्त्वों के चिन्तन का रत्नाकर है यह काव्य । अपनी दिव्य सत्ता और आध्यात्मिकता से यह कृति सद्मार्गदर्शक चिन्तन सूत्र बन गई है। इस कृति में काव्य की मात्रा तो सर्वोपयुक्त है ही, साथ ही दर्शन, धर्म और अध्यात्म का त्रि-संकलन है, जो काव्य का प्राण बन गया है। निश्चय ही आधुनिक, बल्कि उत्तर आधुनिक साहित्य की यह एक अभिनव उपलब्धि है।
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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