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________________ 56 :: मूकमाटी-मीमांसा इस अध्याय में कवि ने साहित्य के समस्त आयामों को नए ढंग से प्रस्तुत किया है । नवों रसों का नया स्वरूप प्रदान करने की मौलिक अभिव्यंजना कवि की सिद्धहस्तता का परिचय देती है। साहित्य की सम्यक् परिभाषा देते हुए कवि लिखता है: "शिल्पी के शिल्पक-साँचे में/साहित्य शब्द ढलता-सा! हित से जो युक्त-समन्वित होता है/वह सहित माना है और सहित का भाव ही/साहित्य बाना है।" (पृ. ११०-१११) कवि का शृंगार भी अध्यात्म से मिश्रित है । इन पंक्तियों में कवि की शृंगारिक दृष्टि कितनी पेशल और सुष्ठु है, देखें: "जिन आँखों में/काजल-काली/करुणाई वह/छलक आई है, कुछ सिखा रही है-/चेतन की तुम/पहचान करो! जिन-अधरों में/प्रांजल लाली/अरुणाई वह/झलक आई है, कुछ दिला रही है-/समता का नित/अनुपान करो, जिन गालों में/मांसल वाली/तरुणाई वह/ ठुलक आई है, कुछ बता रही है-/समुचित बल का/बलिदान करो! जिन बालों में/अलि-गुण हरिणी/कुटिलाई वह/भनक आई है कुछ सुना रही है-/काया का मत/सम्मान करो! जिन चरणों में/सादर आली/चरणाई वह/पुलक आई है . गुनगुना रही है-/पूरा चल कर विश्राम करो!" (पृ. १२८-१२९) उपर्युक्त पंक्तियों में आँखों के साथ 'छलक', अधरों की लाली के साथ 'झलक', गालों की मांसल तरुणाई के साथ 'डुलक, कुटिल बालों की भनक और चरणों के साथ 'पुलक' का जो सार्थक प्रयोग हुआ है, वह देखते ही बनता है। इसी प्रकार वीर और हास्य रस को इंगित करते हुए कवि ने लिखा है : । “वीर रस का अपना इतिहास है/वीरों को उसका अहसास है।" (पृ. १३२) . "हँस-हँस कर बहस मत कर/हास्य रस की कीमत इतनी मत कर!"(पृ.१३३) इसी क्रम में कवि ने समस्त रसों का भी उल्लेख किया है। संगीत और प्रीति की परिभाषा देते हुए कवि लिखता है : "संगीत उसे मानता हूँ/जो संगातीत होता है/और प्रीति उसे मानता हूँ/जो अंगातीत होती है।" (पृ. १४४-१४५) करुण और शान्त में भेद करता हुआ कवि लिखता है : "करुणा की दो स्थितियाँ होती हैं-/एक विषय लोलुपिनी दूसरी विषय-लोपिनी, दिशा-बोधिनी।" (पृ. १५५)
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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