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________________ 'मूकमाटी' : पतित से पावन बनने का सन्देश मुकेश नायक (श्री दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र कुण्डलपुर (दमोह) मध्यप्रदेश में १६ अक्टूबर '९५ को मध्यप्रदेश के (तत्कालीन) उच्चशिक्षा मन्त्री श्री मुकेश नायक की आचार्य श्री विद्यासागर महाराज से महाकाव्य 'मूकमाटी' पर साहित्यिक परिचर्चा) "सूर्य नारायण प्रतिदिन निकलता है और अपना प्रकाश फैलाता जाता है । जो सोकर उठ जाता है वह प्रकाश पा जाता है तथा जो सोकर नहीं उठता, वह उससे वंचित रह जाता है । कुछ लोग घण्टों बिस्तर में पड़े रहकर भी उठना नहीं चाहते, उनके लिए भी सूर्य प्रकाश की किरणें छतों के सुराख से आकर उठा देती हैं अथवा सोते समय जो रजाई से मुख को ढाँककर रखे हों, उसकी रजाई को ऊष्मा से तपाकर भीतर पसीना ला देती हैं और आपको सोते रहने से जगा देती हैं। इसका लाभ-उपयोग लेने वाला ही ले पाता है । इसका सभी लोग लाभ लें, यह भावना अवश्य की जाती/जा सकती है"- उक्त विचार सन्त शिरोमणि दिगम्बर जैनाचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ने श्री दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र कुण्डलपुर (दमोह) मध्य प्रदेश में प्रदेश के उच्चशिक्षा मन्त्री श्री मुकेश नायक से साहित्यिक चर्चा के दौरान उस प्रश्न के उत्तर स्वरूप प्रदान किया, जिसमें आपने यह जानना चाहा था कि आज देश में जाति, वर्ग तथा क्षेत्र आदि की समस्याओं के कारण लोगों में बुद्धि, आनन्द एवं शक्ति संचार के अवरुद्ध द्वार कैसे खुलें ? श्री मुकेश नायक आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के चरण वन्दनार्थ पधारे थे। आपने जानकारी देते हुए बताया कि भारत में एक विशाल सन्त परम्परा है। वह पूरी परम्परा ज्ञान, वैराग्य एवं भक्ति गुण से संयुक्त है। और वह पूर्ण रूप में आचार्यश्री जी में पाई/देखी जाती है । अन्य सन्तों ने वीतराग विज्ञान को सामान्य जनता में उतना सम्प्रेषित नहीं किया, जितना आचार्यप्रवर ने किया है । अत: मेरी भावना है कि आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के लोकविश्रुत महाकाव्य 'मूकमाटी' को मध्यप्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों के उच्चस्तरीय अध्ययन हेतु पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया जाए। इस कार्य को शीघ्र ही मूर्त रूप दिया जा रहा है तथा सम्भव है अगले वर्ष के पाठ्यक्रम में वह सम्मिलित भी हो जाए। इसी परिप्रेक्ष्य में श्री नायक ने यह भी बताया कि २९ अक्टूबर '९५ को भोपाल में 'मूकमाटी' पर एक बृहत् परिचर्चा रखी है, जिसमें देश के अनेक ख्यातिलब्ध समीक्षक एवं साहित्यकार भाग लेंगे। उसके पूर्व आचार्य श्री विद्यासागरजी से 'मूकमाटी' पर कुछ साहित्यिक चर्चा करने यहाँ आया हूँ ताकि यह चर्चा उस संगोष्ठी का धुव केन्द्र हो सके और आचार्यश्री का विशाल दृष्टिकोण लाखों-करोड़ों लोगों तक पहुँच सके। आचार्यश्री से परिचर्चा के दौरान श्री नायक ने जिज्ञासा व्यक्त करते हुए जानना चाहा कि समग्र भारतीय साहित्य के इतिहास में जिस किसी भी भाषा में देखा जाय, किन्हीं भी रचनाकारों ने जो भी महाकाव्य लिखे हैं उनमें से किसी ने भी मूक एवं पददलित माटी को अपना नायक नहीं बनाया। 'मूकमाटी' की नायिका वही धरती है, अत: इसके पीछे क्या कारण या मूल संवेदना रही है ? आपके इस प्रश्न पर समाधान प्रदान करते हुए आचार्यश्री ने कहा कि व्यक्ति के अन्दर सोई शक्ति उद्घाटित हो सके और वह पतित दशा से ऊपर उठकर पावन बन सके, यही मूल उद्देश्य इस रचना का है। जब तक मिट्टी के कण-कण बिखरे रहते हैं तो वह निर्जीव मानी जाती है, किसी विशेष कार्य को सम्पन्न नहीं कर पाती, जलधारण नहीं कर सकती। जैसे घट का रूप होने पर वही मिट्टी जलधारण करने की योग्यता पा जाती है,
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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