SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 40 :: मूकमाटी-मीमांसा If for a year, that year is all my life. ... This, this is the first, last joy and to its throb The riches of a thousand fortunate years Are A poverty. - Savitri. [2/6/1, Pg. 435] परम्परागत पुराख्यान की सती साध्वी सावित्री के पतिव्रता रूप को श्री अरविन्द ने एक अभिनव और पूर्णतर परिवेश प्रदान किया है । सावित्री कहती है कि "मैं मृत्यु से दृढ़तर हूँ और अपने भाग्य से भी महत्तर हूँ | मेरा प्रेम जगत् से अधिक चिरजीवी है, मेरा संकट मेरी अमरता के समक्ष बेबस होकर गिर जाएगा । " I am stronger than death and geater than my fate; My love shall out last The World, doom falls from me Helpless against my immortality. - Savitri. [2/6/1, Pg.432] “मेरा प्रेम भाग्य के बन्धनों से दृढ़तर है । " My love is stronger than the bonds of fate.-Savitri. [3/10/3, Pg. 633] भाग्य के विधान को बदल देने की अदम्य संकल्प शक्ति से समृद्ध यह अनुरक्ति इस सन्देश की घोषणा है कि " प्रेम जीवन का सनातन और महत्तम सत्य है । " Our love is the heavenly seal of The Supreme For Love is the bright link twixt earth and heaven Love is the far transcendent's angel here; Love is man's lien on the Absolute.- Savitri. [ 3/10/3, Pg. 633] 'सावित्री' महाकाव्य का तृतीय भाग सत्यवान के सूक्ष्म शरीर के साथ कालपुरुष की गति का अनुसरण करती हुई सावित्री की अनेक सूक्ष्म लोकों में गुह्य यात्रा की गाथा है जिसमें दिव्य सन्देश की वाहिका दिव्य नारी की अद्भुत शक्ति की प्रतिष्ठा हुई है । For I, the Woman, am the force of god. - Savitri [ Pg. 633] ‘सावित्री' महाकाव्य का सर्वाधिक मौलिक सन्देश उसके तृतीय भाग के एकादश खण्ड 'सनातन दिवस' (Eternal Day) में मुखर हुआ है जिसके अन्तर्गत सावित्री सत्यवान के पुनर्जीवन मात्र से सन्तुष्ट न होकर समग्र सृष्टि के अमरत्व का वरदान प्राप्त करने में समर्थ होती है। यह सनातन दिवस वस्तुत: 'प्रतीक ऊषा' के विकास की चरम परिणति है जो इतिहास, कथा और प्रतीक, सभी के स्तरों पर चरितार्थ हुई है । 'सावित्री' महाकाव्य के अन्तिम अंशों में धरती और मानवता के मंगलमय उज्ज्वल भविष्य के प्रति बलवती आस्था मात्र नहीं, वरन् सम्पूर्ण धरती पर दिव्य भागवत जीवन की अवश्यम्भावी अभिव्यक्ति का आनन्दोन्मुख आश्वासन उद्घोषित है - सारी प्रकृति गुप्त ईश्वर को व्यक्त करेगी, अन्तरात्मा मानवलीला को धारण करेगी और यह पार्थिव जीवन दिव्य जीवन में परिणत होगा । Nature shall live to manifest the secret god, The spirit shall take up the human play, This earthly life become the life divine. - Savitri [ 1/11/1, Pg.710] 'मूकमाटी' तत्त्वद्रष्टा मनीषी कवि आचार्य श्री विद्यासागर द्वारा प्रणीत कालजयी कृति है जो जैन दर्शन से प्रेरित तथा जीवन्त युगबोध से अनुप्राणित है और जिसमें भारतीय प्रज्ञा की आध्यात्मिक अनुभूति वैश्व रागात्मक भावभूमि पर वैचित्र्यपूर्ण कलात्मक अभिव्यंजना के वैभव के साथ चरितार्थ हुई है। परम्परागत रूढ़िग्रस्त मतवादों से परे उठकर आधुनिक मानवीय चेतना की विकासोन्मुखी जययात्रा का लोकमंगलकारी सन्देश जिस सरल, सुबोध एवं मर्मस्पर्शी
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy