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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 33 का यह कहना - 'सुख मुक्ता हूँ, दुःख युक्ता हूँ'- काव्य में दर्शन की उपस्थिति दर्ज कराता है । भौतिक सुख समृद्धि की पागल आकांक्षा से अनुप्रेरित अन्धी दौड़ से उत्पन्न सम्भ्रमों, तनावों और टूटन के युग में आत्म संयम, आत्मोत्सर्ग के द्वारा लोक कल्याण का मार्ग प्रशस्त करने वाला यह काव्य उस युग में रचा गया है, जब यह माना जाने लगा है कि महाकाव्य अतीत की वस्तु हो गया है। यह समस्त मानव समाज वैचारिक सम्पदा का अमूल्य उपहार है । मैं यह मानता हूँ कि काव्य रचना के लिए भावना अनिवार्य तत्त्व है । कवि भावुक होता है। जो भावुक नहीं है, संवेदनशील नहीं है, कवि हो ही नहीं सकता । परन्तु उत्कृष्ट काव्य के लिए यह आवश्यक है कि भावना की नदी चिन्तन के समुद्र की ओर संचरणशील हो और किनारों को रस प्लावित करती हुई चिन्तन के, विचारों के सागर में विसर्जित हो । भावना की नदी का चिन्तन के समुद्र में विसर्जन और चिन्तन के समुद्र का भावना की नदी को आत्मसात् कर लेनाउत्कृष्ट काव्य के लिए अनिवार्य आवश्यकता है । अवा, 'मूकमाटी' इस दृष्टि से उत्कृष्ट काव्य रचना है। धरती माँ, माटी, कंकर, रसना, रस्सी, गदहा, चक्र, दण्ड, मछली तथा और भी अनेक प्रतीक हैं, जिनके द्वारा मानव जीवन की व्याख्या और उसके पथ निर्धारण का निर्देश यह काव्य करता है । कल्पान्तरों में मानवीय मेधा ने जिस सार्वकालिक, सार्वभौम सत्य का अनुसन्धान किया है, वह कहावतों में, मुहावरों में, सूत्रों में- हर भाषा तथा हर जाति की स्मृति में संचित है - 'मूकमाटी' में वह सब अन्तर्नि है । पूरा काव्य मुक्त छन्द में है । परन्तु प्रत्येक पंक्ति गति, यति के साथ अन्तःसूत्र की तरह उपस्थित छन्द का हिस्सा है और इस तरह 'मूकमाटी' काव्य मुक्त छन्द में कर भी छन्द युक्त है । शब्द के व्यक्तित्व से, उसकी सम्पूर्ण व्याप्ति और विस्तार में पहचान कवि के लिए, कविता के लिए आवश्यक है । सन्त कवि विद्यासागरजी ने शब्द की सार्थकता और शक्ति पर जैसा अधिकार अपनी साधना से प्राप्त किया है, वह अप्रतिम है। ‘मूकमाटी' महाकाव्य की रचना के लिए महाकवि विद्यासागरजी प्रणम्य हैं । पृष्ठ ४० पर के प्रति भगवान से प्रार्थना करता है कि
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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