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निज पेट री खबर न काय, तो स्यूं हजारां तणीं। ए दृष्टंत लीज्यो जोड़, खोड़ीली प्रकृति नों धणीं। तिणनैं मैलै सिंघाडै अन्य, कहै नां ततखणी। इसड़ी प्रकत दुःखदाय, खोड़ीली प्रकृति नों धणी।। साज' मांहि पिण कोय, राखै नही ते भणीं। फिट-फिट अधिको होय, खोड़ीली प्रकृति नों धणीं।।
ओ पिण सुख न वेदंत, किण ही सिंघाडा भणीं। बले मन राखे अभिमान, खोडीली प्रकृति नों धणी।। करै अवरां री होड (निज), आतमवश ना बणी। ते किम पांमै सुख, खोड़ीली प्रकृति नों धणी।। आहार पाणी वस्त्रादिक ताम, दियै गुरु अन्य भणीं। तो गुरु सूं पिण राखै द्वेष, खोड़ीली प्रकृति नों धणी॥ जो तिण ने न दीये अन्नपान, तो खंच मन तणी।
आपो न खोजै मूढ, खोड़ीली प्रकृति नों धणी।। ३४. स्वारथ न पूगै सोय, गुरु सूं. पिण अवगुणी।
अवगुण सूझै अनेक, खोड़ीली प्रकृति नों धणी।। आप जिसो अवनीत, तिण सूं प्रीत अति घणी। बात करै दिल खोल, खोड़ीली प्रकृति नों धणी।। करै उतरती बात, ओघड़-घाट३ अति घणी।
मन रा मेला परिणाम, खोड़ीली प्रकृति नों धणी॥ __ मत कहै अवरां पास, बात आपां तणी।
इम बरजी राखै तास, खोड़ीली प्रकृति नों धीणी ।। ३८ तिण कहि ते कहै सर्व, बात गुरु आदिक भणी।
(तो) तिण सूं राखै द्वेष, खोड़ीली प्रकृति नों धणी॥ जिल्लो बांधे मांहोंमांहि, अपर्कीत बहु ते तणी।
ते हुवै जगत में भंड', खोड़ीली प्रकृति नों धणी।। ४० छेड़वियां फुकार, करै रीस अति घणी।
खिण-खिण मांहे क्रोध, खोड़ीली प्रकृति नों घणी।।
७.
१. एक व्यक्ति की प्रमुखता में स्थापित
मुनियों का मंडल। २. अवगणना करने वाला।
३. संकल्प-विकल्प। ४. बदनाम।
शिक्षा री चोपी : ढा०२ : ७३