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१२ सीवंत बोलै सोय, कह्यां रीस अति घणी।
कहै थेइज रहिज्यो सचेत, खोड़ीली प्रकृति नों धणी।। १३ इक दिन में चूकां बहुबार, करै को जतावणी।
कहैं लागो म्हारी लार, खोड़ीली प्रकृति नों धणी __ पड़िकमणौ पडिलेहण करंत, चूकां कहै ते भणी।
तो बिगाडै मुख नों नूर, खोड़ीली प्रकृति नों धणी॥ पाणी नां तडका पड़ता देख कह्यां लाली२ घणी। कहै-पोता रा क्यों न पेखंत, खोड़ीली प्रकृति नों धणी॥ बोले वस्त्र पहिरत, कालै खोड़ ते भणी।
कहै हूंतो रह्यो छू जाण, खोड़ीली प्रकृति री धणी॥ __ऊंची साड़ी रौ कहै कोय, तो मुंह बिगाड़णी।
कहै बडां रो खूचणों काढंत, खोड़ीली प्रकृति री धणी॥ १८ चोलपटो न पहिर्यो सुध रीत, कह्यां रीस करै धणीं। _ . निर्लज नाणे लाज, खोड़ीली प्रकृति नों धणी॥
पूछे खुद्र परिणाम, पांती अवरां तणीं।
थारै विगय कितीक आइ जाण, खोड़ीली प्रकृति नों धणीं।। ____ आहार पाणी रे निमित, करै राड़ अति घणीं।
निर्लज नाणै लाज, खोड़ीली प्रकृति नों धणी॥ थांरी पांती में आहार अधिक, करै बाता घणी। कलहगारो कहिवाय, खोड़ीली प्रकृति नों धणी॥ आपस में करै बात, कै मन भांगण तणीं। कहै भूख तृषा में दिन जाय, खोड़ीली प्रकृति नों धणी।। किण ही सिंघाडा मांय, आतम वश आपणी। करणी नावै कोय, खोड़ीली प्रकृति नों धणी॥ निज आतमवश नाय, तो स्यूं अवरां तणीं। ते अगवाण अजोग, खोड़ीली प्रकृति नों धणी।। पायो रुपइयो एक, पंडित थयो भणी।
पिण प्रकृति निनाणू रह्या शेष, खोड़ीली प्रकृति नों धणी।। २६ हूंस 'टोळा री" अधिकाय, पूगै किम ते तणीं।
प्रकृति अधिक अजोग, खोड़ीली प्रकृति नों धणी॥ १. बिन्दु
३. अवगुण।
४. कलह। २. आंखों में उत्तेजना।५.
अग्रगण्य बनने की इच्छा। ७२ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था