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ढाळ २
सुखदाई सुविनीत . नों, बाधै सुजस विसेष। सुध प्रकृति मंद चोकडी, वारू विमल विवेक॥ दुःखदाई अविनीत नों, अपजश अधिको होय। क्रोधी मानी लोळपी, विवेक रहित अवलोय॥ स्वार्थ तसु पूगै नहीं, अवगुण सूझै अनेक। बोलै विगर विमासियो, अविनय कर्म कुरेख। प्रकृति खोडिली' तास अति, कालै ख्रचणो कोय। समभावै सहिवौ कठण, अति क्रोधातुर होय।। अक-बक बोलै अति घणों, अवगुण ढांकण काज। ओलखावू तस प्रकृति नैं, सुणज्यो सुरत समाज॥
खोड़ीली प्रकृति तो धणी ॥ध्रुपदं॥ करे चालंतां बात, कहै कोई ते भणी। ठीक न कहै बोलै ओर, खोडोली प्रकृति नों धणी॥ पक्की जयणां रो कहै, करतां आहार, इण में चूकां अणी। ठीक न कहै रहै मौन, खोड़ीली प्रकृति नों धणी। आहार करतां पूरी जयणा नाहि, करै को जतावणी। तो पाछौ ओड़ो' दै जाण, खोड़ीली प्रकृति नों घणी॥ चूकै पडिलेहण करंत, दीयै सीख ते भणी।
फेरै मुंह नो नूर, खोड़ीली प्रकृति प्रकृति नों धणी॥ ___ जोड़ी' करतां चूकां कहै तास, तो रीस करै घणी॥
वदै क्रोध तणे वश वाण, खोड़ीली प्रकृति नों धणी॥ चालंतां तंतू घीसंत, कह्यां वच अवगणी। बड़ो कहण वालो मोय, खोड़ीली प्रकृति नों धणी॥
१. दुष्ट २.सावधान। ३. लय-नदी जमुना के तीर
४. शिक्षा देने वालों को बीच-बीच में टोकना। ५. चिकने पात्रों की अन्तिम रूप से सफाई। ६. वस्त्र
शिक्षा री चोपी : दा० २ : ७१