________________
५४ आचारज नै कोप्या जाण नै, सुवनीत संत सुखदाया।
प्रसन्न करै मधुर वचन सूं, बलै करै घणी नरमाया। ५५ बुझावै क्रोध अग्नि . सुगुर तणी, कर जोड़ वदै इम वाया।
आज पछै इसो काम हूं बले, कदे ही न करूं गुरुराया। ५६ आज कृतारथ हूं. थयो, मोर्ने, निषेध्यो परिषद मांह्या।
आज भलो भाण ऊगीयो, मोनैं अमरित प्याला पाया।। ५७ आज म्हारी जागी दिसा, रत्न चिंतामणी पाया।
वृष्टि अमोलक रत्न री, वारू परिषद में वरसाया।। ५८ संवत उगणीसै बारे समें, मृगसर विद दसम सुखदाया।
सतगुरु सीख सहामणी, दीधी जयजस हर्ष सवाया।।
७० तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था