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बलै
गण स्तंभ ज्यूंच्यारूं
महागुणी,
सराया।
पाया ॥
अथाया।
गण भार - धुरा ज्यांरी - भुजा, ते पिण तो औरां री कुणसी चली, गुरु अधिक तोल त्यांरौ बध्यौ, तीरथ भारिमाल परसंसिया चोडै, खमियां रा ४२ जिणनैं सुगुरु वचन खमवा दोहिला, तो अवर नां मान राखै सतगुरु थकी, ते तौ महामूरख कहिवाया ॥ ४३ कठिन वचन गुरु सीख दै, ते तौ अमरित सूं अधिकाया । भाग्य दिसा भारी हुवै, जब सतगुरु सीख सवाया । ४४ तीन ठाणै मोजीरामजी, विण मुरजी लावा में रहिवाया। आगलै, सुण स्वाम संतां नैं बोलाया ॥ मती, हिवै मोजीरामजी पिण किण नवि सीस नमाया ॥ लागिया, भारीमाल हुकम फुरमाया । जद वनणा कीधी साध-साधव्यां, निषेदी तसु दंड दिया || ४७ बहुबार सतजुगी हैम नैं, इमहिज स्वाम में निषेधियां, समभाव
राजनगर आया पूज
आया ।
४५ कोई वनणा कीज्यो
देखै सहु साध - साधवी, ४६ पछै आय पूज पगां
त्यांनै चोड़ परषद ४८ मोद पिंडतपणां
नों आण नैं, अभिमानी मत कहो, छानै
सीख कह्यां, दुर्लभ रहिवौ विधे, मान मेट्यां कह्यो, गुरु कठण हित मानै सही, अवनीत न्याती नै कहै, तिम जाणे
सुव ५१ मित्र भाई
दास
अवनीत सीख कठण सुणी, लेखवै ५२ गुरु कठण वचन निषेधियां, सुवनीत चिंते
आज अनुग्रह गुरु
तणों,
शीतल
कठण परम लाभ अति
३९ सतजुगी
४०
४१
४९
५०
५३
नै वैणीरामजी,
परिषद माहै मोनैं इम अभिमानी नै चोडै कुर' बधै त्यांरो किण उत्तराध्ययन पहिलां में
१. मुश्किल
२. सम्मान
वचने
मुज
करी,
हैम
अनै ऋषराया।
समभाव सह्या तज माया ॥ अहंकार मिटाया ।
ऊपर
कहिवाया ॥
मान
सर्व
च्यार
ए फळ
कठण
ऋषराया ।
रह्या
मुनिराया ॥
कहै इम वाया ।
देवौ
सम
सूं कुरब
सीख
कहिवाया ।
ने द्वेष भराया ॥
सुहाया ।
जेम रुलाया ॥
वनीत
मुनिराया ॥ अध्यवसाया ।
बधाया ॥
मन माया ।
ऊपर छै
अधिकाया ॥
गुरु सीख देवै सुखदाया ।
तिको
मुनिराया ॥
लेखवै,
सुवनीत
३. उत्तरज्झयणाणि अ. १ गा ३८
शिक्षा री चोपी : ढा० १९ : ६९