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२५ रीत ए सहू श्रमण-श्रमणी तणी, अगवाण नै तौ अधिकाया।
सूत्र वखाण सीखै सही, तिम खमवौ सीख्या सुख पाया। २६ भारीमाल ईडवा मझै, परषदा में निषेद्या सवाया।
ते मुनिवर कहै स्वाम नैं, मोनैं छानैं कहो ऋषिराया। ताम स्वाम भारीमालजी, सतयुगी मुनि नै बोलाया।
सुणो खेतसीजी ए इम कहै, मानें छानै कहो ऋषिराया। २८ छानें कहां म्है किण विधै, हिवै तो चौड़े कहिवौ सवाया।
इम सुण नै ऋषिरायजी, हद सीख धार पद पाया।। भिक्षु स्वाम पीपाड़ में, वैणीरामजी नै बौलाया।
दोय तीन बार हेलौ पाड़ियौ, पिण बोल्या नही ऋषिराया॥ ३० लूणावत गुमानजी तेहनें, इम स्वाम भिक्षु बोल्या वाया।
'बैणों छूटतो दीसै' अछै, जब गुमानजी त्यां पासै आया। ३१ कही स्वाम भिक्षु नहीं बारता' सुण त्रास अधिक दिल पाया।
आय पगां पड्या स्वाम नैं, जै तौ सुवनीत महामुनिराया। ३२ स्वाम कहै हेलो पाड़ियो, तूं बोल्यो नहीं किण न्याया।
वैणीरामजी कहै सुणियौ नहीं, घणों विनय करी नै रीझाया।। ३३ इसड़ा सुवनीत गुरां तणां, ज्यांरो काण-कुरब' बधाया।
चो. निषेध्यां बेदल हुवै, त्यांरो कुरब बधै किण न्याया।। ३४ वर्ष बावनां रा लिखत में, इम स्वाम भिक्षु फुरमाया।
अजोगाई कीधी किण आर्यो, तिण नै प्राच्छित देणौ सवाया। ३५ बलै च्यार तीर्थ में तेहनें, हेलणी निंदणी निंदणी पड़सी ताह्या।
पछै कहोला मार्ने भांडे अछै, बले करै फितूरों अथाया।। ३६ (तिणसू)पहिला सावधान रहिज्यौ सहु, सावधान रह्या जो नाह्या।
तो मुंडा दिसोला लोकां मझै, पछै कहोला मानै न जताया।। ३७ लिखत पचासो साधां तणों, तिण में पिण ए गाया।
आज्ञा लोप्यां मरजादा उलंघिया, अथवा अथिर परिणामी नै ताह्या।। ३८ तो गृही नै जतावां रा भाव छै, बले श्रमण सती नै सुखदाया।
त्यां नै पिण जतावारा भाव छै, पछै कहोला मोनै न जताया।।
१. वार्ता २. विशेष प्रतिष्ठा ३. अनमना
४. अनुचित व्यवहार ५. उपद्रव ६. गृहस्थ
६८ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था