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४१ लोळपणौं अधिकाय, साता नी बांछा घणी।
सुखसीलियो साख्यात, खोड़ीली प्रकृति नों धणी।। निशदिन वेदै दुःख, पुद्गल प्यासा घणी। आज्ञा ऊपर नहिं दिष्ट, खोड़ीली प्रकृति नों धणी।। आचार्य नी मर्याद, लोपण बांछा घणी नहीं साहूकारा नी नीत, खोड़ीली प्रकृति नों धणी ।। __ चिहुंतीर्थ में पेख, पाड़े ईज्जत घणी।
तो पिण नहीं सचेत, खोड़ीली प्रकृति नों धणी ॥ स्त्रियादिक नहीं ताम, विषय प्यासा घणी। पछै हुवै जगत में भंड, खोड़ीली प्रकृति नों धणी || बोलै ऊंधी बाण, बंक वच में घणी। विवेक विकळ कहिवाय, खोड़ीली प्रकृति नों धणी ॥ म्हारा सिंघाड़ा नी बात, कहणी नहीं गुरु भणी।
ते भेष ले हुवो खराब, खोड़ीली प्रकृति नों धणी ॥ ४८. खामी कहै गुरु ने कोय, तास सिंघाडा तणी।
तो तिण ने निषेधे मूढ, खोड़ीली प्रकृति नों धणी ॥ क्रोध मान माया लोभ, वशै बाणी घणी। बोलै बंक सहित, खोड़ीली प्रकृति नों धणी ।। साताकारिया खैत्रां नी हूंस, राखै मन में घणी। लूखो' खैत्र भळायां देवै टाळ, खोड़ीली प्रकृति नों धणी ॥ चउमासो सेखै काळ, रहै इच्छा मन तणी।
गुरु राखै जठै रहै नांहि, खोड़ीली प्रकृति नों धणी ।। ___ करे पांती रो आहार, बांछां विगयादिक तणी।
नहीं पाती में संतोष, खोड़ीली प्रकृति नों धणी ॥ ___ बंछा दूध दही घृत दाल, सरस आहारादिक तणी।
बोझ पांती नों दियां वेदै दुक्ख, खोड़ीली प्रकृति नों धणी ।। निशिदिन बांछा तास, ताजा खेत्रां तणी। नही आज्ञा उपर तीखी दिष्ट, खोड़ीली प्रकृति नों धणी ॥ सुगुरु पासे सुखदाय, श्रमण सतियां घणी। तिण में काढे दोष, खोड़ीली प्रकृति नों धणी ॥
१. सामान्य।
७४ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था