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सहै भूख तृषा पिण सेव- न छंडै गुरु तणी। त्यांसू कलुस परिणाम, खोड़ीली प्रकृति नों धणी ॥ गुरुकुल वासै वनीत, पामें रति अति घणी। पिण ओ तो पामें दुक्ख, खोड़ीली प्रकृति नों धणी ॥ श्रमण सती रहै गुरु पास, कीरत संपत घणीं। त्यां में बतावै दोष, खोड़ीली प्रकृति नों धणी ॥ ऊंडी विचारणा नांय, बोली अलखामणी'। कहै-गवेषणा नहीं कोय, खोड़ीली प्रकृति नों धणी ॥ गुरु कनै रहै छांदो रूंध, लोळपणां नै हणीं। अधिक गुण नहीं जाण गिंवार, खोड़ीली प्रकृति नों धणी ॥ पोता री सगत न काय, रहै तसु अवगणी।
ओ दोय मुरख कहिवाय, खोड़ीली प्रकृति नों धणी ॥ भेळा रहै बहू संत, सत्यां पिण रहै घणी। ए काढ्यो भिक्षु में रूपचन्द दोष, खोड़ीली प्रकृति नो धणी ॥ ते रूपचन्द टळ्यो गण बार', हुई खराबी अति घणी। तिम ए पिण हुवै खुराब, खोड़ीली प्रकृति नों धणी ॥ कार्य भळावै कोय, आचारज ते भणी। न करै विनय सहित अंगीकार, खोड़ीली प्रकृति नों धणी ॥ देवै आचारज सीख, कठिन मृदु वच भणी,। तो बोलै अलखामणो तास, · खोड़ीली प्रकृति नों धणी ।। प्रकृति खोड़ीली राख, पामैं आपद घणी। भव २ दुखियो थाय, खोड़ीली प्रकृति नों धणी ॥ इम सांभळ नर नार, संग तजो ते तणी। जो तिण सूं राखै प्यार, खोड़ीली प्रकृति नों धणी ।। भिक्षु भारीमाल ऋषिराय, प्रसाद संपति बणी। जयजस करण गणेश, सरस शिक्षा भणी।।
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१. अनगमती २. शक्ति ३. दोहरी मूर्खता करने वाला
४. देखे- पंरपरा री जोड़ ५. स० १८५० में
शिक्षा री चोपी : ढा०३ : ७५