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ढाळ ३
दूहा
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निज छांदो' रुंधे निपुण, विनयवंत सुविचार। गुण ग्राही सुवनीत नो, सुजस बधै संसार ।। छांदो संध्या शिव मिलै, चउथे उत्राध्यैन । रमै सुगुरु अभिप्राय रिख, ते पामैं सुख चैन । विनयवंत निर्मळ मुनि, पतळी च्यार कषाय। ठाम-ठाम गुण मुनि तणां, दाख्या श्री जिनराय॥ तिण सूं प्रकृति सुधार नें, पंडित हुवै प्रवीण। सफल सुभव तेहनो सही, सुगुणों संत सुचीन। खोड़ीली प्रकृती तज्यां, चोखी प्रकृती होय। ओळखावू तस वानगी, सुणज्यो भवियण लोय।।
चोखी प्रकृति नों धणी ॥ध्रुपदं॥ करे चालंता बात, कहै कोई ते भणीं। कर जोड़ तथा कहै-ठीक, चोखी प्रकृति नों धणी।। पक्की जयणां रो कहै करतां आहार, इण में चूकां अणी। ठीक कहै तत्काळ, चोखी प्रकृति नों धणी।। आहार करतां अजयणां देख, करै को जतावणी। ओड़ो न दै कहै ठीक, चोखी प्रकृति नों धणी॥ जोड़ी करतां चूकां कहै तास, तो ठीक कहै गुणी। बलि माने तसु उपगार, चोखी प्रकृति नों धणी।। चूकै पडिलेहण करत, दीयै सीख ते भणीं। हरष सहित करै अंगीकार, चोखी प्रकृति नों धणी।। चालंता अजयणां देख, कह्यां तसु वच सुणी। कहै-भलो जतायो मोय, चोखी प्रकृति नों धणीं।।
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१. इच्छा
३. नमूना २. उत्तरज्झयणाणि अ०४ गा०८ ४. लय : नदी जमुना के तीर उडै ७६ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था