________________
३
१२ सीवंत, रंगत, वाटंत, बोल्या कहै ते भणी।
कहै-ठीक तू परम मंत्रीश, चोखी प्रकृति नो धणी॥ एक दिन में चूकां बहुबार, करै को जतावणी। कहै-तो सम कुण मुज सैण, चोखी प्रकृति नों धणी।। पड़िकमणो पडिलेहण करत, चूंका कहै ते भणी। करै हरष सहित अंगीकार, चोखी प्रकृति नों धणी।। बोले वस्त्र पहिरंत, काढे खोड़ ते तणी। कहै-भूला ने आण्यों माग, चोखी प्रकृति नों धणी।। पाणी रा तड़का' पड़ता देख, कह्या रीस नैं हणी। ठीक कहै तसु अभिप्राय, चोखी प्रकृति नों धणी।। ऊंची साड़ी कहै कोय, तो प्रकृति सुधारिणी। कहै-राखी म्हारी लाज, चोखी प्रकृति नों धणी॥ चोलपटो न पहर्यो सुध रीत, कह्या ते सुधा सम गिणी। अधिक मानें उपगार, चोखी प्रकृति नों धणी।। आहार पाणी रे निमत्त, बोलत लज्या घणी।
गम खावै रहै मौन, चोखी प्रकृति नों धणी।। ___ पूछे खुद्र परिणाम, पांती अवरां तणी।
तसु पासै वेसंतां आवै लाज, चोखी प्रकृति नों धणी॥ न करै झौड़-झखाल२, बात आहारादिक तणी।
न बोले पेला रे बीच, चोखी प्रकृति नों धणी।। ___अवनीत करै को बात, मन भांगण तणी।
(तसु) पासै वेसंता लाज अत्यंत, चोखी प्रकृति नों धणी।। बोलै गिणवा बोल, लज्या मन में घणी। सर्व भणी सुखदाय, चोखी प्रकृति नों धणी।। रखै बैरी हुवै कोय, विचारणा दिल घणी।
बोलै गिणवा बोल, चोखी प्रकृति नों धणी।। २५ सर्व सिंघाडा मांय, आतम वश आपणी।
लिए बधाई तास, चोखी प्रकृति नों धणीं। २६ निज आतमवश कीध, तारै अवरां भणी ।
ते अगवाण सुजोग, चोखी प्रकृति नों धणी॥
३. अन्य।
१. बूंदें २. टंटा-फिसाद।
शिक्षा री चोपी : ढा० ३ : ७७