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तणी ।
रह्यो
नों धणी ।।
हूंस
ही
घणी ।
अति प्रकृति नों
धणी ।
शक्ति तेहनीं
घणी ।
पाया रुपइया निनाणूं, प्रकृति सुध जेह भणवा रो रुपियो एक, चोखी प्रकृति टोळा नीं तास, पूगै गुरु आपे संत अमोल, चोखी निज आतम सुख करण, जहां रहै तिहां सुख वेदंत, चोखी प्रकृति नों धणी ॥ अन्य सिंघाडा मांय, मेल्या सुधामणी । इसड़ी प्रकृति सुखदाय, चोखी प्रकृति नों धणी ॥ साज मांहि सहु कोय, हूं राखण तास उधेड़, चोखी प्रकृति नों पिण सुख वेदंत, सर्व सिंघाड़े मान गुमान, चोखी प्रकृति नों न करै औरां री होड, आतम वश अति घणी । सदा काळ सुखदाय, चोखी प्रकृति नों धणी ॥ आहार पाणि वस्त्रादिक, ताम दियै गुरु अन्य भणी । तो पामें हरष विसेस, चोखी प्रकृति नों
तणीं ।
लैवे
ओ
मैटे
धणी ॥
जो तिण ने न दियै वस्त्रादिक, तो खंच न मन
दियां न दियां समभाव,
चोखी प्रकृति नों
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राखै
स्वार्थ पूगां न पूगां तास, सुगुरु तुल परिणाम, चोखी प्रकृति नों जिस्यो सुवनीत, तिण सूं प्रीत मित्रपणों अति प्यार, चोखी प्रकृति नों
आप
अति
अविनीतां नें कान,
न करै तिण सूं गुष्ट',
न
करै उतरती
सुध घणां परिणाम,
देसना
बात करता सुरंग,
जिल्लो
न बांधै सासण ऊपर दृष्टि,
१. हेलमेल ।
२. उपदेश ।
लगावै नहीं
चोखी प्रकृति नों ओघटघाट
बात,
ने
चोखी प्रकृति न
तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था
जाण,
सार, सासण दीपावण
चोखी प्रकृति
नों
समझ दिल चोखी प्रकृति
धणी ॥
धणी ॥
सिरोमणी ।
धणी ॥
गुणी ।
धणी ॥
तणी ।
घणी ।
धणी ॥
गुणी ।
धणी ॥
हणी ।
धणी ॥
तणी ।
धणी ॥
में घणी । नों धणी ॥