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कठण वचन कहै कोय, तो दिल समता घणी। पाछो न बोले विरुद्ध, चोखी प्रकृति नों धणी॥ सुख-सीलियो नहीं कोय, लोळपणा ने हणी। कर्म काटण नी नीत, चोखी प्रकृति नों धणी।। सगुरु तणी वर आण, ऊपर दृष्टि अति घणीं। छांडे पुद्गल प्यास, चोखी प्रकृति नों धणी॥ आचार्य नी मर्याद के, सरस सुहामणी। न गिणे सहल' मन माय, चोखी प्रकृति नों धणी॥ प्रवर हाजरी पेख, वाचण मानसा घणी। सुणे, सुणावा मन हूंस, चोखी प्रकृति नों धणी॥ स्वाम भिक्षु ना लिखत, उमंग पावै सुणी। इक चित्त हरख विसेस, चोखी प्रकृति नों धणी॥ लिखत सुणतां मुख नूर, करत सरावणी। तिणरा पालण परिणाम, चोखी प्रकृति नों धणी॥ जो माथे आवै दंड, याद राखै गुणी। साहूकारा नी नीत, चोखी प्रकृति नों धणी। सर्व साधां में पेख, इज्जत तेहनी घणी। दिन-दिन अधिक सचेत, चोखी प्रकृति नों धणी॥ स्त्रियादिक नी तास, बंछा नहीं विषय तणी। छांडै कुसंग कुमाग, चोखी प्रकृति नों धणी॥ बोलै सूधी२ बाण, बांक नहीं वच तणी। सरल घणों सुवनीत, चोखी प्रकृति नों धणी॥ म राखो छानी बात, म्हारा सिंघाडा तणी। इसडो अदल° साहूकार, चोखी प्रकृति नों धणी॥ जो कहै गुरां ने जाय, खामी सिंघाडा तणी। तिण ने सरावै सुजाण, चोखी प्रकृति नों धणी।। क्रोध मान माया लोभ, वशे बाणी धणी। न बौळे बंक सहीत, चोखी प्रकृति नों धणी॥ प्रकृति खोड़ीली मेट, पामें संपति घणी। भव-भव सुखियो थाय, · चोखी प्रकृति नों धणी॥
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१.सामान्य। २.सरल।
३. वचन। ४. अटल-नहीं मुकरने वाला।
शिक्षा री चोपी : ढा० ३ : ७९