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एक पक्ष में सरस हाजरी, वखाण में इकवारी। सिंघाड़ा बंध बांचै त्यांरी, पूछा . करै उदारी॥ आपस में परचो नहि बांधे, तास उपाय विचारी। कलह मिटावै गण सोभावै, तूं गण तिलक उदारी।। संग मिटावण ग्राम-ग्राम में, अवसर देख उदारी। बोलण चालण नै वेसण री, · कर मरजादा भारी॥ भाव सल्य राखै तेहना फळ, वखाण में विस्तारी। सल्य मिटै तेहना फल सुर सिव, कहिजै बारंबारी।। सुद्ध असुद्ध अन्नादिक लेवे, देवै बलि दातारी। तेहनां फल पिण वखाण में, तूं वार-वार विस्तारी।। मुनि अज्जा नी प्रकृति ओळखी, मेलै क्षेत्र मझारी। परिचय आदि पुकार न आवै, दीजै सीख उदारी॥ कदाचित जो पुकार' आयां, बलि तिण स्थानक बारी। बलि तिण खेत्र विषै मेलै तो, करै विचारण भारी।। सूकी दोव दीसै पिण घन सूं, हरित हुवै तिणवारी। तिम वलि तिण खेरै तसु मेल्यां, हुवै हरित मोह क्यारी। भिक्षु स्वाम थया ओजागर', लीधो मारग भारी। ते सुध राखै सिव अभिलाखै, लही संपदा सारी।। ए श्रद्धा आचार अनोपम, सिव हेतु सुखकारी। ते सुद्ध पाळे, सुद्ध पळावै, तूं सासण नेतारी॥ भिक्षु स्वाम तणे परसाद, तैं मग पायो भारी। दुर्गति खंडन सिव सुख मंडन, राखै अधिक सुधारी॥ त्रिभुवन नाथ वीर प्रभु मोटा, तास पाट तूं भारी। च्यार तीर्थ ना थाट सम्पदा, ते गहघाट' उदारी।। नीत हुवै चारित पाळण री, दीजै स्हाज अपारी। ए सगळा तुज सरणै आया, तूं सहु नों नेतारी।। कोइक तो है तन नों रोगी, कोइ मन रोगी धारी। नीत हुवै चारित्र पाळण री, स्हाज दियै हितकारी।
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५. उत्साह वर्धक भीड़ ६.सहायता।
१. त्रुटि की सूचना। २. दूब। ३. जल ४. उद्योग करने वाले।
६२ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था