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चरण पाळण नी नीत हुवै नहीं, तसु काट्टै गण बारी | तिण री काण मूळ मत राखै, डर भय दूर निवारी॥ सासण वीर तणों इण भरते, छै थारे भुज भारी। तिण कारण ए सीख दई तुज, स्यूं कहूं बारंबारी।। भिक्षु स्वाम तणीं मरजादा, अखंड पळावै सारी। बलि ए सीख देइ मैं तुज ने, गण बच्छल हितकारी॥ भिक्षु स्वाम थया ओजागर, भारीमाल शिष्य भारी। जंबू स्वाम जिसा पट तीजै, रिखिराय बड़ा ब्रह्मचारी॥ तास पसाये लही संपदा, जय जस गणपति सारी। ते थिर राखण सिवसुख चाखण, दीधी सीख उदारी॥ पद युवराज समापे गणपति, ते रहै त्यां लग सारी। तूं सेवा कीजै साचै मन, रहिजै आज्ञाकारी॥ चरण बड़ा संता ने वनणां', आछी रीत उदारी। तूं सुध कीजै जग जस लीजै, मूल रीत ए भारी। विहार करी नै बड़ा मुनिसर, आयां नगर मझारी। आसण छोड़ी, ऊभो थइ नै, कर वंदण हितकारी॥ 'चरण बड़ा' नै लघु संतां जिम, आण अखंडित थारी। आराधणी छै तन मन सेती, चारित जेम उदारी॥ पद युवराज शिष्य मघराज-भणी ए शिक्षा सारी। बले अनागत गणपति है तसु, एहिज सीख उदारी।। शिक्षा ए गणपति नै दीधी, म्हे निज बुध अनुसारी। वलि तुझनै सुख है जिम कीजै, सासण गण वृद्धिकारी। उगणीसै बीसै चउमासे, चूरू शहर मझारी। जयजस गणपति शिक्षा आपी, आणी हरष अपारी।।
१. बाहर। २. वन्दना। ३. संयम-पर्याय में बड़ा
गणपति सिखावण : ६३