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________________ ४९ ५० ५१ ५२ 133232 ५३ ५४ ५५ ५६ ५७ ५८ ५९ ६० ६१ अछै थारे भुज, तू सासण सिणगारी । चाहिजै, ए ओळखणा सारी ॥ दीपावै, धर उछरंग तुज ने परमुख गण अपारी । सूं प्रीत न राखै, विनयवंत भारी ॥ गणपति नां अति गुण दीपावै, परम प्रीत अति भारी । प्रत्यनीक नै तुरत निखेधै, ते सासण सिणगारी ॥ गणपति नां गुण करतौ संके, वदै दुखकारी । अवनीतां सूं हेतज राखै, ते स्वाम लिखत मरजादा सुण-सुण, गण दीपावै अति लसावै, वयण अवनीत विडारी ॥ हरखै हिया मझारी । सासण सिणगारी ॥ स्वाम लिखत मरजादा सुण मन मुरझावै बलि कुमलावै, गणपति नै सासण परम प्रीति तिण रै मझारी । सारी ॥ नै, न गमै चित्त मझारी । अवनीत विडारी ॥ रा गुण सुण, हरखै हिया गणपति सूं, तूं ओळखजै गणपति, सासण ना गुणसुण नै, देवै प्रतिकूल गणपति पूरो, ओळख करै सासण वीर तणों भिक्षु गण, करै उतरती तास निखेधी नै दण्ड मुनिवर अज्जा, राखै मुंह दीजै, काण म राख कन्है है जे सदा हाजरी तास सुणावै, आलस सासण तिण कारण सनमुख प्रत्यनीक भार उगणीसै पनरै नित्यप्रति लिखनै कन्है रहै जै नित्य प्रति लीजै सेखै काळ नित्य · मर्यादा, बांधी मुनि सुणावै, ए मुनिवर पूछा कीजै, विविध प्रकार विचारी ॥ सिंघाड़े, संत सती सुखकारी। हाजरी अक्षर' लिखणा, पूछ करै निरधारी ॥ चउमास बिगारी । विचारी ॥ ज्यांरी । लिगारी ॥ मझारी । निजर अंग निवारी | ए हितकारी । भारी ॥ दृढ़ राखै अज्जा, तास हाजरी सारी । १. बिकारी । २. लिहाज ३. मर्यादाएं प्रारंभ में प्रतिदिन सुनाई जाती थी। सं० २००५ तक सप्ताह में दो बार, अब नियमित रूप से पक्ष में एक बार चतुर्दशी के दिन सुनाई जाती है। ४. सं० २०१६ तक लेखपत्र में प्रतिदिन हस्ताक्षर करने की विधि थी। आचार्य श्री तुलसी ने तेरापंथ द्वि शताब्दी के अवसर पर इस व्यवस्था में परिवर्तन किया । गणपति सिखावण : ६१
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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