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५६ लिखत पचासा मांहि, आख्यो मुनि नै इण विधे।
किण री खावा पीवादिक री ताहि, करणो बड़ा कहै ज्यूं तेह नै॥ ५७ लिखत बावना मांहि, आरजियां नैं इम कह्यो।
आहार आश्री मांहो मांही, बात चलावण रा त्याग छै।। ५८ शेखेकाळ चोमास, करणो बड़ा कहै जठै।
इत्यादिक सुविमास, विविध वारता त्यां कही।। ५९ हिवै बोल इग्यारमो जोय, अमल तमाखू आदि दे।
(लेणो) रोगादिक कारण सोय, विसन रूप लेणो नहीं। ६० सहु समणी नै सोय, आचारज नी आण ए।
आज्ञा सूं लै कोय, दोष नही छै तेह में। ६१ मुनि नां लिखत मझार ए वस्तु वरजी नहीं ।
(तिण सूं) सुगुर आण श्रीकार, आज्ञा विन लेणो नहीं। वस्त तमाखू आदि, सूत्र मांहि वरजी नहीं। गणपति बांधी मर्याद, आचारज रै हाथ है।। बोल बारमो सार, संता नै सतियां भणीं। आचार गोचार मझार, ढीला पड़ता जाण नै।। सासण निमल समाध, सर्व संत सतियां भणीं।
करली बांधै मर्याद, तो पिण नां कहिणो नहीं।। ६५ सीख इत्यादिक सार, चरण संघात सुहामणी।
कर लेणी अंगीकार, जाव जीव पचखांण छै ।। ६६ अठार तेतीसै सार, विद बीज बुद्ध मृगसर मझे।
ए लिखत वंचाय अंगीकार, कराय सामायक आपियो॥ ६७ बले छेदोपस्थापनी फेर, दीधो लिखत वचाय नैं।
कियो अंगीकार चित्त घेर, हरष सहित च्यारूं अजा॥, ६८ उगणीसै चवद उदार, फागुन विद अष्टम शनी।
जयजश गणपति सार, सरल जोड़ बीदासरे ।।
लिखतां री जोड़: ढा० १८ : ५१