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४१ तिण सूं फतूजी रा लिखत माहि,छठा बोल माहै कह्यौ।
चेली करणी ताहि, साधां री आज्ञा थकी।। ४२ बोल सातमां मांय, कीधां पछै अजोग है।
तो देणी छिटकाय, साधां रा कह्यां थकी। ४३ ए पिण सहु नै जाण, न्याय गुणसठा लिखत में।
बुद्धवंत कहै पिछाण, (तो) अजोग नैं नहिं राखणो।। ४४ हिवै बोल आठमां माहि, आरजियां साथै जुई।
मेल्या नटणो नाहि, ए पिण बोल सहु तणों ।। ४५ लिखत गुणसठे तास, आचारज री आंण सूं।
शेखे काळ चोमास, विण आज्ञा रहिणो नहीं।। ४६ संत सत्यां रो जाण, दोष प्रकृत ओगुण तिको।
गुरु नै कहिणो आंण, न कहिणो ग्रहस्थादिक आगलै।। ४७ नवमो बोल निहाल, ए पिण छै सघलां तणें।
पचासै बावनै न्हाल, प्रगट अक्षर है लिखत में। ४८ संत सत्यां रो कोय, दोष तुरत कहिवो तसु।
तथा गुरां पै सोय, अवर भणी कहिवो नही।। ४९ हिवै दसमों बोल कहिवाय, लोळपणो जाणै मुनी।
वस्त्र अन्नादिक मांहि, तो प्रतीत उपजावणी।। ५० ए पिण सहुनों जाण, न्याय कहुं हिव एहनों।
लिखत गुणसठे आण, भाखी संत सत्यां भणी।। ५१ वीस कोस चालीस, अथवा अलगी दूर है।
चोमासो उतरयां दीस, अथवा सेखे काळ में।। ५२ कपड़ो जाच्यो होय, फाड़-तोड़ ते वस्त्र नै।
द्वैत-वैत नैं सोय, आप मते नहीं पहिरणो।। ५३ काम पडै जरूर रो ताय, तो जाडो-जाडो वांटणो।
महीं आचार्य रै पाय, आण मेलणो आगलै ।। ५४ आचार्य इच्छा जोग, इच्छा आवै ज्यूं दिये।
ते लेणो तज सोग, पाछी बात न चलावणी।। ५५ वरस गुणसठे स्वाम, संत सत्यां नै वारता। . आखी इण विध ताम, वस्त्र ममत मेटण भणी।।
१. बांट-बांट कर। ५० तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था