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________________ २६ पैताळीसा लिखत मांय, इण विध आख्यो स्वामजी। ते बिहुँ बोल इण न्याय, फतूजी नै ईज छ ।। २७ वले फतूजी रा लिखत माय, तीजो बोल कह्यो इसो। विरहो आर्थ्यां रो थाय, जद करणी संलेखणा ।। २८ ए रीत सहुनी जांण, विरह थया दोयां भणी। कल्पे नहीं पिछण, संळेखणा करणी सही।। २९ साधां मैं पिण ताम, पैंताळीसा लिखत में। इमहिज भिक्षु स्वाम, आखी तास संलेखणा ।। ३० कदाचि टोळा माहि, दोष जाण्यां रहिणो नहीं। एकल होय नै ताहि, संलेखणा करवी कही।। ३१ आत्म तणों किल्याण, वेगो करणो तेह नैं। ए सरधा शुद्ध जाण, है तो गण में राखणो।। गाळागोळो कर कोय, रहै तो तसु नहिं राखणो। काढ देणो तसु सोय, पछै इ आळ दे नीक ।। ३३ लिखत पैताळीसा मांय, इण विध दाख्यो स्वामजी। एकल भणी सुहाय, संलेखणा करवी कही ।। ३४ ए सरधा सुखदाय, शुद्ध कही भिक्षु स्वामजी। संलेखणा बिन ताहि, नहीं रहिणो एकल भणी।। ३५ सहु समणी नै ताम, दोयां नै कल्पे नही। संलेखणा अभिराम, लिखत तेतीसा में कही। ३६ बोल तीजा रो न्याय, आख्यो म्है विस्तार कर। हिव आगल कहिवाय, बोल चोथो नै पांचमों। ३७ चोमासो सेखे काळ, रहिणो साध कहै जठै। सहु समणी नै न्हाळ, बोल चोथो नै पांचमो।। ३८ चेली करणी ताहि, साधां रा कह्यां थकी। विण आज्ञा करणी नाहि, ए छठो बोल सहु तणे। ३९ लिखत बतीसा मांय, शिष्य सहु भारीमाल रे। करणा कह्या सुहाय, अवर तणे करणा नहीं।। ४० भारीमाल 'रजाबंध' होय, शिष्य सूपै जो अवर नैं। तो तसु करणो सोय, विण आज्ञा करणों नहीं।। १. राजी खुशी लिखतां री जोड़ : ढा० १८ : ४९
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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