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१२ जद समचै साध अनै सतियां भणी, करली मर्यादा बांधै सार।
तो पिण नां नहीं कहिणो एह में, जब बांधै ते कर लेणी अंगीकार ।। १३ इत्यादिक सीखामण साचै मनै, चारित्र संघाते सखर सुजाण।
अंगीकृत कर लेणी आछी तरै, जावजीव लगै ए पचखांण। १४ संवत् अठारै तेतीसे समै, मिगशिर बिद बीज अनै बुधवार।
अंगीकार करायो लिखत बंचाय नै, अदरायो सामायिक चारित्र सार ।। १५ छेदोपस्थापनी चारित्र बली दियो, जद पिण एहिज लिखत वंचाय।
हरष सूं अंगीकार कीधो अछै, च्यांसू इ आर्यां चित चाय॥ १६ संवत् उगणीसै चवदै समै, बिद फागुण छठ अनै गुरवार। जोड़ कीधी बीदासर सहर में, जयजश गणपति संपति सार।।
सोरठा १७ लिखत तेतीसा मांहि, मर्यादा फतू तणीं।
सहु समणी नी नांहि, केइ बोल सघला तणां । १८ वर चोतीसे स्वाम, लिखत सहु समणी तणों।
कीधो अति अभिराम, अक्षर छै तिण में इसा।। १९ फतूजी नै गण मांय, लीधा जद कीधो लिखत।
ए मर्याद सोभाय, सहु समणी नै कबूल छै ।। २० इण विध आख्यो स्वाम, वरस चोतीसा लिखत में।
पिण बहु बोल तमाम, सघळी समणी रै नहीं। २१ ऊभी नै अवलोय, जो कीड़ी सूझै नहीं।
विहार सगत घट्यां सोय, संलेखणा मंडणो सही।। २२ ए दोनूंइ बोल अवलोय, फतूजी नै ईज छै ।
अवरां रे नही कोय, न्याय पैंतालीसा लिखत में। २३ आंख्यादिक वृद्ध गिलाण, कारणीक जे कोई हुवै।
व्यावच तसु अगिलाण, करणी रूडी 'रीत' सूं। २४ संलेखणा री सोय, ताकीदी करणी नहीं।
वैराग वधै ज्यूं जोय, बीजा नै करणो सही।। २५ विहार करण री रीत, काची निजर हुवै तदा ।
बहु खपकर धर 'पीत', चलावणो तेह नैं सही।।
१. कङी ।
४८ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था