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लिखित सं० १८३३ री जोड़
ढाळ : १८
दूहा
बावीस टोळा मांहिली, फतू आदि दे च्यार । भिक्षु गण आवी तदा, कीधो लिखत उदार ।।
'जोय जो रे नीत निपुण स्वामी तणी रे॥ध्रुपदं॥ आर्या फतूजी आदि च्यारू भणी रे, दिख्या दीधां पहिली सीखमाण सार रे। आचार गोचर विधि लिखिये अछै रे, ते चरित्र संघाते त्याग रे॥ ऊभी नै कीङी जद सूझे नहीं, तो संलेखणा मंडणो हरष अपार। विहार करण री सक्त हुवै नहीं, जद पिण संलेखणा सुविचार। आर्यों रो विजोग पड़यां कल्पे नहीं, जद पिण संलेखणा सुविशेष। ए बोल तीजा में भिक्खू भाखियो, नहि कल्पै जद संलेखणा ए रेस। चोमासो करणो साधु कहै जिहां, रहणो साधु कहै ज्यां सेखे काळ।
चेळी करणी साधां रा कहण सूं, आज्ञा विण करणी नहीं निहाल ।। ६ शिष्यणी कीधां पछै पिण अर्जिका, साधपणां लायक न हुवै सनूर।
साधां रा चित मांहि बेसे नही, तो संता रा कह्या सू करणी दूर ।। ७ जो साधां री इच्छा आवै एहवी, जुदो करावै विहार सुजोय।
और आरजिया साथै जुइ, मेले तो नां नहीं कहिणो कोय॥ ८ साध साधवियां रो कोई ख्रचणो, दोष प्रकृतादिक रो ताहि।
अवगुण देखै कहिणो गुरां भणी, पिण गृहस्थादिक आगै कहिणो नाहि॥ आहारपाणी न कपड़ादिक मझे, उपजे लोळपणां री संक।
तो साधां नै प्रतीत आवै जिण विधै रे, जिण विध करणो छाड़ी बंक॥ १० अमल तम्बाखू वस्त्र आदि दे, लेणो रोगादिक कारण ताहि ।
पिण विसन रूप तो ते लेणो नहीं, लिया इ सझे ज्यूं करणो नांहि ।। ११ वलै सर्व साधु नै साधवियां भणी, आचार गोचार मांहि सुविहांण।
ढीला पड़ता देखै तिण अवसरै, अथवा संका पड़ती मन जांण।
१.लय : श्री जिणवर गणधर मुनिवर... २. अनशन की पूर्व तैयारी के लिए की जाने वाली तपस्या।
३. अलग। ४. व्यसन।
लिखतां री जोड़ : ढा० १८ : ४७