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२६ अंसमात्र धेठापणों रे, मान अहंकार न धरणो।
तुरंग' खिण रंग विरंग न करणो, जो बंछै भव तिरणो। २७ इत्यादिक बहु बोल याद, आवै ते बले लिखेवां।
तेह नां पिण नां कहिवा रा, पचखांण करै तो लेवां। २८ एहवी ए प्रतीत पकावट, उलट धरी उपजावै।
तो सगला नै प्रतीत आवै, इम भिक्खू फुरमावै ।। २९ समत् अठारे गुणतीसे, फागुण सुदि वारस सारो।
वृहस्पतिवार लिखतू ऋष भीखन, वूसी गाव मझारो॥ ए लिखत थिरपाल फतेचन्दजी, हरनाथ भारमलजी नै। तिलोकचंदजी नै पिण ए, संभलायो हरष धरी नै। पाछे कह्या लिख्या तिके रे, बोल सारा इ तामो।
अखेराम सांभळ नैं, ए अंगीकार किया छै आमो।। ३२ चरण संघात त्याग कर, साधां नै प्रतीत उपजाइ।
लिखतू अखेराम ऊपरलो, लिख्यो सही छै ताहि॥ ३३ ए दोनूं इ गाथा तणां रे, अक्षर अति अभिरामो।
अखेरामजी निज कर सेती, लिख दीधा छै तामो॥ ३४ उगणीसे चउदे समे रे, महा सुदि छठ गुरवारो।
जय जश गणपति जोड़ करी ए, आणी हरष अपारो। ३५ चउतीस संत अठ्यासी समणी, रतनगढ़ रंग रेला।
ठाणां एक सो बावीसा सूं, मंडिया जबरा मेला।।
१. तरंग।
४६ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था