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________________ लिखित सं० १८५२ री जोड़ (ढा०-३) दाळ : १० दूहा १ लिखत बावना री भली, कहियै तीजी ढाळ। . स्वाम तणीं मर्याद वर, पाली ते गुण-माल। 'सतियां ! स्वाम मर्यादा आराधियै रे ।। धुपदं ।। २ सतियां ! सुगुर तणी आणा विना रे, संता भेळी न रहिणो ताहि रे। सतियां ! आज्ञा विण पास न बेसणो रे, कनै उभी पिण रहिणो नांहि रे॥ ३ सतियां ! देवो-लेवो उपगरण नो, ओ तो करणो नहीं कोय। सतियां ! मुनि नै सुणै तिण गाम में, जाणो नही अवलोय॥ सतियां ! जाण्यां बिना जावै कदा, अथवा मार्ग में हुवै गाम । सतियां ! एक रात्रि सुं अधिको तसु, रहिवो नहीं तिण ठांम॥ सतियां ! कारण पडियां रहै कदा, तो गोचरी ना घर ताहि। सतियां ! बांट लेणां तिण अवसरै, नित रो नित पूछणों नाहि।। सतियां! वंदना करण जावै तो अलग सूं, (वंदणा) कर पाछो बलणो सताब। सतियां ! अधिक उभो . रहणो नहीं, एहवो लिखत माहै छै जाब। सतियां ! कोई समाचार साधां तणां, पूछणा है तो अलगी सोय। सतियां ! पूछी नै वलणो सताब सूं, पिण उभो न रहिणो कोय॥ सतियां ! सतगुर रा कह्यां थकी, बले कारण पड़िया ताम। सतियां ! बात न्यारी दै तेहनी, इम लिखत में कह्यो भिक्खु स्वाम।। सतियां ! किण ही संत अनै सतियां मझे, दोष देख्या कहिणो ताहि। सतियां ! अथवा कहिणो गुर आगलै, और किण ही आगै कहिणो नाहि। १० सतियां ! रहिसै-रहिसै किण ही भणी, और मूंडी जाणै ज्यूं तास। सतियां ! करणो नही छे तेह नै, ए स्वाम वचन सुप्रकाश। ११ सतियां ! किण ही आरज्यां जाण नै, दोष सेव्यो हुवै जो ताहि। सतियां ! (तो) पानां मांहि लिखियां बिना, विगै तरकारी खांणी नाहि॥ ३. शीघ्रता । .१. लय : हंसा नदीय किनारै रूखड़ा रे २. वापिस होना लिखतां री जोड़ : दा० १० : २९
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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